Friday, 24 January 2014

मैं कोई काम मुफ़्त में नहीं करता

मैं कोई काम मुफ़्त में नहीं करता

मेरा नाम राज है,

तो बात एक महीने पहले की है जब मुझे पैसों की जरूरत थी, मैं काम की तलाश में यहाँ वहाँ भटक रहा था।

एक बार रात के करीब दो बजे रेलवे स्टेशन पर मैं गाड़ी की राह देख रहा था, एक कोने में बैठा था, तभी एक औरत आई और मुझसे पूछा- कहा जाओगे?

मैंने कहा- मुझे गुजरात जाना है, गाड़ी का इंतजार कर रहा हूँ, आपको कहाँ जाना है?

तो उसने बताया- मैं कहीं नहीं जा रही, मुझे तो किसी का इंतज़ार है।

थोड़ी देर बाद वो बोली- अकेले हो?

मैं- हाँ !

फिर वो बोली- मेरे साथ चलोगे?

मैं- कहाँ?

तो उसने बताया- सेक्स करने !

मैं उसकी ओर देखता ही रह गया। फिर मैंने सोचा कि अच्छा मौका है पैसे कमाने का, मैंने कहा- मैडम मैं कोई काम फ्री में नहीं करता। तो उसने कहा- अगर तुम मेरे सेक्स गुलाम बनो तो?

तो मैंने उसे हाँ कहा और कहा- मैं पैसों के लिए कुछ भी कर सकता हूँ !

फिर उसने कहा- तो चलो फिर !

हम स्टेशन से निकले और वो मुझे एक कार तक लेकर गई और मुझे उसमें बैठने को कहा।

हम निकल पड़े और फिर थोड़ी देर बाद गाड़ी एक होटल पर रुकी। हम होटल में गये, उसने एक रूम लिया, हम रूम में गये और फिर उसने अपनी साड़ी उतार दी, मुझे अपने पास बुलाया और बाहों में लेकर मुझे चूमने लगी। फिर मेरी कमीज़ उतार दी, मैंने उसके मुलायम होठों पर अपने होंठ रख दिए और उसे चूमने लगा, उसके होठों का रस पीने लगा।

फिर उसने मेरी पैंट के ऊपर से ही मेरे लण्ड को अपने हाथ ले लिया और उसे दबाने लगी। मैं उसके चूचे दबाने लगा।

और फिर उसने नीचे बैठ कर मेरी पैंट खोली और मेरे लण्ड को अपने मुख में ले लिया और चूसने लगी।

मैं उसके बाल पकड़ कर अपने लौड़े से उसका मुखचोदन करने लगा, और वो भी साथ देने लगी। फिर उसने मेरे कूल्हों पर अपने दोनों हाथ रखे और मेरे लण्ड को पूरा अपने मुख में लिया और जी भर कर चूसने लगी और फिर दस मिनट चूसने के बाद उसने अपने कपड़े उतारे। मेरे सामने अब वो पूरी नंगी थी, उसे देख कर मैं पागल सा हो गया। क्या बदन था साली का !

मेरा लंड अब सलामी देने लगा पर उसने मुझे नीचे बिठाया, अपना एक पैर बिस्तर पर रखा और मेरे सिर को पकड़ कर मुझे अपनी चूत चाटने को कहा।

मैंने उसकी चूत में जैसे ही अपनी जीभ डाली, उसने मेरा सिर ज़ोर से पकड़ कर अपनी चूत में दबाया और मैं उसकी चूत के होठों को अपने दांतों तले चबाने लगा। वो पागलों की तरह मेरे बालों को पकड़ कर अपनी चूत पर मेरे मुँह को रगड़ने लगी।

मैंने 5-7 मिनट तक उसकी चूत को चाटा, फिर उसने मुझे उठाया और अपने उरोज मेरे मुँह में रखे, मैं अपने दांतों तले उसकी छोटी छोटी काली काली निप्पल को चबाने लगा।

वो अब ज्यादा गर्म हो गई। फिर उसने मेरे लण्ड को थूक लगाया और मुझे अपने ऊपर चढ़ाया और मेरे लंड को पकड़ कर अपनी चूत पर रखा, मैंने ज़ोर से धक्का मारा तो आधा लंड घुस गया और वो चिल्ला उठी।

मैंने कहा- क्या हुआ?

तो कहने लगी- पिछले दो महीनों से चुदी नहीं मैं ! मैं प्यासी हूँ, मेरी प्यास बुझा दो !

फिर मैंने कहा- तुम चिंता मत करो, आज मैं तुम्हारी प्यास बुझा कर रहूँगा।

फिर मैंने ज़ोर से दूसरा धक्का मारा और पूरा लंड उसकी चूत में चला गया। वो मेरा साथ देने लगी, हम दोनों ज़ोश में आ गये। मैं ज़ोर जोर से शॉट मारने लगा और वो उछल उछल कर मेरा साथ देने लगी।

फिर करीबन बीस मिनट चोदने के बाद उसने मेरा लंड मुँह में लिया। मैंने उसकी चूत पर मुंह लगाया, वो मेरा लंड चूसने लगी और मैं उसकी चूत चाटने लगा।

हम 69 पोजीशन में आ गये। फिर कुछ देर बाद वो घोड़ी बन गई, मैंने उसके पीछे से अपना लंड डाला और चोदने लगा। वो भी मजे से मेरे साथ झटके मार रही थी।

मैं अब झड़ने वाला था, मैंने उसे बताया कि मैं झड़ने वाला हूँ तो उसने कहा- मेरे मुँह में अपना वीर्य दो !

मैंने उसकी चूत में से अपना लण्ड निकाल कर उसके मुँह में दिया और उसने सारा वीर्य अपने मुँह में ले लिया और फिर उसने अपनी चूत मेरे मुँह में रख कर मेरे मुँह में अपनी चूत का सारा पानी छोड़ा।

थोड़ी देर बाद वो उठी और दोबारा मेरे लंड को चूसने लगी। उस रात मैंने उसको तीन बार चोदा। सुबह दस बजे हम उठे और उसने जाने से पहले मुझे दस हज़ार रुपए दिए और मेरा मोबाइल नंबर लिया। फिर मैंने बाहर आकर फ़ैसला किया कि अब मैं एक ही काम करूँगा, प्यासी औरतों की प्यास बुझाऊँगा और पैसे कमाऊँगा।

नवयौवना

नवयौवना 

मैं श्रेया आहूजा फिर से एक बार एक मदमस्त कथा लेकर आपके सामने हाज़िर हूँ।

यह आपबीती मेरे एक सीनियर की है जिनका नाम अजय जायसवाल है।

जायसवाल साहब एक बड़ी कंपनी के मैनेजर है जहाँ मैं बतौर रिसेप्शनिस्ट काम कर रही हूँ।

जायसवाल साहब ने मुझे एक शाम अपने केबिन में बुलाया और यह घटना सुनाई क्योंकि मैं जायसवाल साहब की काफी करीबी थी।

कंपनी में बड़ा कॉन्ट्रैक्ट दिलाने पर लोग न जाने क्या क्या तोहफा पेश करते हैं और इस बार जायसवाल साहब को कुछ अलग ही तोहफा मिला।

जायसवाल साहब की उम्र करीब पचास रही होगी, कॉन्ट्रैक्ट दिलवाने के एवज में उन्हें फाइव स्टार होटल मे आने का निमन्त्रण मिला।

अरविन्द कुशवाह और जितेंद्र कुशवाह -कुशवाह ग्रुप के चेयरमैन हैं।

महाराजा सूइट में डिनर के बाद ब्लैक लेबल व्हिस्की देते हुए अरविन्द- अरे जायसवाल साहब यह उपहार तो ले लीजिये..

जायसवाल- बस अब चलूँगा ! बहुत देर हो गई, घर पर बीवी और मेरी बेटी इंतज़ार कर रहे होंगे।

जितेंद्र उनके हाथ में दस लाख का चेक थमाते हुए- अरे साहब, यह लीजिये... ...और मेरी मानिये, आज रात यहीं रुक जायें।

जायसवाल- दस लाख?

जितेंद्र- बस हमारे तरफ से एक नजराना !

तभी कमरे की घंटी बजी... एक नवयौवना अन्दर आई। उम्र कोई रही होगी उनकी अपनी बेटी जितनी... बीस इक्कीस साल की, गोरी, पतली सी... सलवार सूट में... स्लीवलेस सूट में उसके गोरी गोरी पतली बाजू बहुत सुन्दर लग रही थी।

जितेंद्र- आप यहीं आराम कीजिए, हम चलते हैं जायसवाल साहब !

अरविन्द- आज रात इस रेवती की सेवा का आनन्द लीजिए, ऐश कीजिए...

देखते देखते दोनों उन दोनों को कमरे में अकेले छोड़ कर कमरे से निकल गए।

जायसवाल के शब्दों में:

रेवती ने ड्रिन्क्स बनाई, मेरे पास आई और मुझे ड्रिंक्स पिलाने लगी।

मैं- कहाँ की हो तुम?

रेवती- देवास की...

मैं- और घर पर कौन कौन है?

रेवती- क्या साब... शादी मनाने का है क्या...?

मैं- मेरे शादी तो कब की हो गई... तेरे बराबर तो मेरी बेटी है।

रेवती- होगी... तो...? अब साहब मौज करो ना !

यह कह कर उसने अपने कपड़े खोल लिए... अब उसने सिर्फ ब्रा और पैंटी पहन रखी थी... काले रंग की ...

पता नहीं उसे देख मुझे अपनी बेटी क्यूँ याद आ रही थी.. वही डील डौल... वैसा ही रंग !

मैं ख्यालों में खोया था और रेवती ने मेरे कपड़े उतारने शुरु कर दिये थे।

मैं अब सिर्फ अंडरवियर में था... वो भी ब्रा पैंटी में.. मेरी उम्र से देखो तो बिलकुल बच्ची थी !

वो मेरे पास आकर बैठ गई और अपने होंठ मेरे होंठों से चिपका दिए।

बिल्कुल बेबी वाले होंठ थे... आज बड़े दिनों बाद किसी को इस तरह चूम रहा था। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।

अच्छा भी लग रहा था और बुरा भी...

बुरा इसलिए क्यूंकि अब मेरी उम्र नहीं रह गई थी ये सब करने की... अब तो मैं अपनी बीवी से ही कहाँ सेक्स कर पाता हूँ !

वो अक्सर पूजा पाठ में लगी रहती और मैं कामों में व्यस्त रहता !

सेक्स किये अरसा बीत गया था... लेकिन यह लड़की अलग ही थी !

बिल्कुल मासूम... मैं उसके होंठ चूसे जा रहा था... बहुत मुलायम थे... बहुत कोमल !

उसके मुख से मीठी मीठी महक आ रही थी और उसके लब बहुत ही मीठे लग रहे थे।

कुछ देर प्रगाढ़ चुम्बन करने के बाद मैंने उसे हटाया तो उसने अपने ब्रा खोल दी और उसके कप अपने दुग्ध उभारों से हटाये...

गोल गोल मुलायम स्तन...

मैंने छुआ !

रेवती- क्यूँ अंकल कैसे लगे...?

मैं- अंकल...?

रेवती- अब आपकी उम्र के लोगो को अंकल ही बोलूँगी ना?

मैं- तुम अंकल नहीं, सेक्स के दौरान मुझे पापा भी बोल सकती हो !

इससे पहले वो कुछ समझती मैं झट से उसके उरोज चूसने लगा।

छोटी छोटी अधखिली चूचियों को मैं चूसे जा था... उसके चूतड़ों को दबा रहा था।

सोच रहा था कि मेरी बेटी के भी बिलकुल ऐसे ही बूब्स और कूल्हे होंगे... इतने ही मुलायम...

मेरा लंड खड़ा हो गया था... मैंने उसे बिस्तर में पटका, दोनों पैर फैलाए और लंड घुसाने लगा..

रेवती- अहह अंकल, दर्द हो रहा है...

मैं- बस थोड़ी देर... पहले चुदाई हुई है न...?

रेवती- हुई तो है लेकिन इतना बड़ा लंड कभी नहीं मिला...

मेरा लंड बहुत दिनों बाद चोदने को आतुर था, मैंने उसकी योनि में उंगली डाली, एकदम छोटा सा छेद था...

मैं- अरे क्या जांघें हैं... सींक सलाई सी... पतली सी... खाती नहीं हो क्या ठीक से??

रेवती- खाती हूँ पर बदन में कुछ लगता ही नहीं !

मैं- अरे खूब खाया करो... मेरी बेटी भी तेरी ही उम्र की है... देखो मलाई मक्खन खाकर एकदम मस्त है !

रेवती- मस्त बोले तो..?

मैं- अरे उसकी भरी हुई जांघें... ये मोटे मोटे चूचे... और फूले हुए चूतड़ !

रेवती- बहुत सुन्दर है क्या??

मैं- हाँ बहुत सुन्दर...

फिर मैं उसकी जांघें फैला कर अपना लण्ड घुसेड़ने लगा।

रेवती- ई..ई... बस बस ! धीरे धीरे थोड़ा थोड़ा घुसाओ !

मुझे ऐसे लग रहा था कि किसी बच्ची की चुदाई कर रहा था मानो मैं...

मैं उसके गुलाब के पंखुड़ी के माफिक होंठों को चूसे जा रहा था...

रेवती- अंकल आप बहुत भारी हो...

मैं- अरे कुतिया ! कब से बोले जा रही है... दम नहीं है तो चुदवाने क्यूँ आई?

मुझे गुस्सा आ गया...साली रण्डी होकर भी इतने नखरे दिखा रही थी... मैंने उसकी पतली कमर को पकड़ा और लंड की रफ़्तार बढ़ा दी

और कुछ झटकों के बाद अपना वीर्य उसकी बुर में त्याग दिया।

वो मचल उठी...

उसे मैंने उस रात तीन बार चोदा।

अब पता नहीं कहाँ होगी पर अक्सर उसकी याद आ जाती है और उसे चोदने का बहुत मन करने लगता है !

श्रेया यानि मैं- इसमें बुराई क्या है, हजारों लोग ऐसी लड़कियों से सेक्स करते हैं।

जायसवाल- बुराई यह नहीं थी, बुराई तो अब मैं कर रहा हूँ, रोज़ अपने ही घर में !

मैं- मैं कुछ समझी नहीं सर?

जायसवाल- अरे तेरी आंटी के तो अब लटक गए हैं... मोटी थुलथुली हो गई है, क्या चोदूँगा उसे ! अब बस मैं अपनी बेटी को छुप छुप कर देखता रहता हूँ।

मैं- लेकिन यह गलत है अंकल !

जायसवाल- मैं जानता हूँ... कल रात वो जब कपड़े बदल रही थी, तब मैं उसे देख रहा था। मैं मुठ मारने लगा हूँ उसके नाम की... डरता हूँ कुछ हो न जाये !

मैं- तो उसे कहीं बाहर पढ़ने भेज दो?

जायसवाल- हाँ यही ठीक रहेगा... जब से रेवती की चुदाई की है सेक्स मेरे भेजे में घुस गया है... पिछली कुछ रातों से अजीब हरकतें कर रहा हूँ...

एक रात मेरी बेटी मुझसे लिपट के सो रही थी... मुझसे रहा नहीं जा रहा था... मैं वहाँ से उठ कर चला गया।

मैं- नहीं, आप अपनी सोच को सुधारिये, बेटी के लिए ऐसा सोचना बिल्कुल ठीक नहीं है... आप वादा कीजिए कि ऐसा वैसा कुछ नहीं करोगे !

जायसवाल- ठीक है वादा... मैं अपना तबादला दूसरे शहर करवा लूँगा, इससे मैं वहाँ अकेला रह लूँगा !

अंकल अपना तबादला करवा कर चले भी गए।

तो सहेलियो, आपके लिए श्रेया की बस एक सलाह है कि व्यस्क हो जाने के बाद अपने पापा या भाई के साथ न सोयें... मर्द तो मर्द होते हैं...


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चूत का मसाला

चूत का मसाला  

करीब छह महीने पहले मैंने एक नया कमरा किराये पर लिया। मेरी बीवी अभी पूना में होने के कारण मैं यहाँ अकेला ही रह रहा हूँ। नई कमरे के पड़ोस में ही एक परिवार रहता है, राजेश मेडिकल कंपनी में है, उसकी बीवी मीरा लगभग 35 साल की है पर क्या माल है, क्या बताऊँ !

उसके चूचे और चूतड़ देखकर किसी के भी मुँह में पानी आ जाये। एकदम विद्या बालन के माफिक ! उनका 15 साल का एक लड़का है, वो मुंबई में पढ़ाई करता है। पर जिस दिन से मैंने मीरा को देखा उस दिन से मेरा लंड उसे चोदने के लिए तड़प रहा था। मैं जब भी उसे देखता, मेरा लंड पैंट में ही तम्बू खड़ा कर देता। वो भी मेरी नजर को जान चुकी थी पर मैं हिम्मत नहीं कर पा रहा था।

तभी भगवन ने मेरी सुन ली।

मैं शाम को करीब 6 बजे रूम पर लौटा ही था, तभी सामने वाली खिड़की से मीरा ने मुझे आवाज दी। धीरे धीरे जान-पहचान बढ़ने से मैं उससे बात कर लेता था पर आज उसके अचानक आवाज देने से मैं चोंक गया।

मैंने देखा कि वो कुछ परेशान दिख रही थी, मैंने पूछा- क्या बात है?

उसने मुझे घर में आने को कहा। मैं जैसे ही घर में पहुँचा, तो वो सोफे पर लेटी हुई थी, मैंने पूछा- क्या हुआ?

तो उसने रोती सूरत बना कर कहा- देखो, यह बात तुम किसी से नहीं कहोगे...

मैंने कहा- बात क्या है? मैं किसी से कुछ नहीं कहूँगा...

फिर वो हिचकिचाते हुए कहने लगी- ..राजू... के पिताजी... यानि मेरे पति... राजेश मेरी इच्छा पूरी नहीं कर पाते इसलिए मैं और चीजों से काम चलाती हूँ, वो कल से गाँव गए हैं, मैं आज बाजार खरीददारी करने गयी थी.. मैंने सब्जी खरीदते समय अच्छे और लम्बे बैंगन ख़रीदे थे। घर आते ही मेरी नजर बैंगन पर पड़ी और मेरी अन्दर की आग सुलग गई। मैंने बैंगन पर वेसलिन लगाकर अपनी टाँगों के बीच में रगड़ना शुरू किया, मुझे बहुत मजा आ रहा था। उसी मदहोशी में मैंने बैंगन को अन्दर-बाहर करना शुरू किया। इसी बीच बैंगन पूरा अन्दर तक डाल दिया और उसके डंठल को पकड़कर खींचने लगी। तभी अचानक बैंगन पूरा अन्दर गया, मैं उसे बाहर खींचने लगी पर डंठल टूटकर हाथ में आ गया। पिछले तीन घण्टे से कोशिश करने के बावजूद भी मैं उसे बाहर नहीं निकाल पाई। मैं ठीक से चल भी नहीं सकती हूँ, मुझे बहुत दर्द हो रहा है, प्लीज मुझे इससे छुटकारा दिलाओ !

ऐसा कह कर वो रोने लगी !

पर ये सब सुनकर मेरा खड़ा हो गया था, मैंने कहा- एक बार मैं कोशिश करता हूँ..

वो बिना कुछ कहे मान गई, मैंने उसका गाउन ऊपर उठाया, छेड़खानी से उसकी चूत पूरी लाल हो चुकी थी, मुझे लगा अभी मुँह लगाकर चूस लूँ !

मैंने उसके दोनों पैर ऊपर उठा कर चूत का दरवाजा खोल दिया, बैंगन का मुँह साफ़ दिखाई दे रहा था पर 5 इंच लम्बा बैंगन चूत के अन्दर फंसा था, मैं उसे निकलने की नाकाम कोशिश कर रहा था। वेसलिन की वजह से बैंगन हाथ से छुट रहा था, कुछ समय बाद हार मान कर मैंने कहा- देखो, इसे निकालना सिर्फ डॉक्टर के बस की बात है।

वो कहने लगी- नहीं, डॉक्टर को मालूम हुआ तो मेरी बेइज्जती होगी...

मैंने कहा- तुम उसकी फ़िक्र मत करो, मेरा एक दोस्त डॉक्टर है, उसे बुला लेते हैं।

नानुकर के बाद वो मान गई। मैंने डॉक्टर हरीश को फोन लगाया और उसे पूरा किस्सा फोन पर ही सुना दिया। आधे घंटे बाद हरीश पहुँचा, उसने मीरा को देखकर सीटी बजाई और बोला- इतना बड़ा लंड तुम्हारे पड़ोस में होकर बैंगन क्यों घुसा रही हो...

उसकी बेधड़क बात सुन कर मीरा शरमा गई...

हरीश ने मुझे उसकी दोनों टांगें पकड़ने को कहा और उसकी चूत पर एक्स्पोज़र लगाया।अब चूत के अन्दर का साफ साफ दिख रहा था, नाख़ून लगने से अन्दर जख्म हुए थे।

हरीश ने अपने औजारों से बैंगन के टुकड़े करके बैंगन चूत से निकाला तो मीरा के चेहरे पर छुटकारे का आनन्द दिख रहा था...

उसने कहा- थेंक यू डॉक्टर...

हरीश ने कहा- मैं आपको यह मलहम देता हूँ.. इसे दिन में दो बार अन्दर लगाइएगा.. 4-5 दिन में जख्म ठीक हो जायेंगे... चेक अप लिए जरूर आइयेगा...

वो उठने लगा तो मीरा ने पूछा- आपकी फ़ीस?

हरीश बोला- फ़ीस तो हम दोनों लेंगे पर पहले ठीक हो जाओ.. हम दोनों के बैंगन तुम्हारी चूत में जाने के लिए बेताब हैं...

हम दोनों हंस पड़े और वो शरमा गई।

हरीश के जाने के बाद मीरा बोली- विनोद, आज तुम नहीं होते तो मेरा क्या हाल हुआ होता...

मैंने कहा- अब घबराओ मत, इसके बाद तुम्हे बैंगन की जरूरत नहीं पड़ेगी...

ऐसा कह कर मैंने उसके लबों को चूम और चूस भी लिया... यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।

उसने कहा- अब मलहम लगा दोगे प्लीज...

फिर क्या ५ दिन तक उसके पति के ऑफिस जाने के बाद और आने से पहले मैं मलहम लगाने जाता रहा... 5 दिन के बाद चेकअप करने के लिए मैंने हरीश से वक्त लिया... उसने दोपहर को लंच टाइम में आने को कहा।

मैं और मीरा समय पर पहुँच गए... हरीश का छोटा सा क्लिनिक था...

उसने डॉक्टर आउट का बोर्ड लटकाकर हमें अन्दर बुला लिया। उसके बाद हरीश ने मीरा की सलवार उतारकर चूत चेक की और बोला- अरे वाह, तुम्हारी चूत तो अब बैंगन घुसाने के लिए एकदम तैयार है...

मीरा बोली- नहीं अब फिर नहीं करुँगी...

हरीश हंसकर बोला- ..जी, मैं हमारे बैंगन की बात कर रहा हूँ... यही तो हमारी फ़ीस है।...ऐसा कहते हुए हरीश ने उसके होंठ चूमते हुए मम्मे दबाने शुरू किये... मैं भी शुरू होगया... मैंने उसकी कमीज उतार कर ब्रा सरकाते हुए मम्मे चूसना शुरू किया.. उसकी चूत एकदम साफ और चिकनी थी... मुझे उस दिन की याद आई और मैंने सीधा उसकी चूत पर मुँह रख दिया... इधर मैं चूत और उधर हरीश मम्मे चूस रहा था..

मीरा अब गर्म होने लगी थी, मेरे मुँह पर चूत रगड़ते हुए... आह... उई माँ... उफ़... ईई... आह... आ... करने लगी।

तभी डॉक्टर ने मुझे हटाते हुए अपना मुँह चूत पर लगा दिया। मीरा एग्ज़ामिनेशन टेबल पर लेटी हुई थी.. मैंने अपने कपड़े उतार कर 8 इंच का लंड उसके मुँह में दे दिया। वो उसे मजे से चूस रही थी... अब डॉक्टर ने अपने कपड़े उतार कर उसकी चूत में लंड डाल दिया।

अब उसे और मजा आने लगा- ...चोदो मुझे... जोर से... और जोर... से.. स...आह...उफ़...करो...राजा...चोदे मुझे... कह कर चुदने लगी.. उसकी आवाजें सुन कर डॉक्टर ने गति बढ़ा दी... वैसे ही उसने जोरसे मेरा लंड चूसना शुरू किया...

तभी हरीश ने लंड बाहर निकलते हुए उसका मुंह खीचते हुए लंड मुँह में ठूंस दिया... मैंने मौका पाकर मीरा की चूत पेलनी शुरू की। हरीश ने सारा माल उसके मुँह में डाल दिया और वो मजे से पीने लगी।

इधर मैं धक्के पे धक्के मारे जा रहा था.. इस बीच मीरा दो बार झड़ चुकी थी... मैंने जैसे ही गति बढ़ाई तो वो अपने हाथ से चूत मसलते हुए आह... और जोर चोद मुझे... मेरी प्यास बुझा... आह... उई...मर... गयी... इ इ... स...स...कहते हुए झड़ने लगी।

मैं अब चरम सीमा पर था, मैंने आख़िर के धक्के मारते हुए सारा माल चूत में डाल दिया।

कुछ देर बाद वो सामान्य हुई तो बोली- विनोद, तुमने तो सारा माल अन्दर डाल दिया ..अब गड़बड़ हो गई तो?

तड़पता लण्ड

तड़पता लण्ड 

रेशमा भाभी बहुत ही खूबसूरत है, उसका फिगर 36-24-36 है। एक दिन मैं जब उनके घर के पास से गुजर रहा था तो तभी भाभी घर से बाहर निकली और मुझे देख कर आवाज देकर रोक लिया..

मैं रुक गया, अपनी गाड़ी वहीं पर खड़ी कर दी।

वो मुझसे पूछने लगी- क्या हुआ नीरव? आप मुझसे नाराज हैं क्या?

मैंने कहा- नहीं भाभी, आपसे नाराज हो जाऊँगा तो कहा जाऊँगा?

वो मेरा जवाब सुनकर मुस्करा पड़ी, भाभी ने बड़ी कातिल मुस्कान दी और कहा- घर में आओ, चाय पीकर जाना ! मैं घर में अकेली ही हूँ।

मेरे मन में भाभी के साथ सैक्स करने का उस दिन याद आ गया, मैंने सोचा आज तो भाभी को चोद ही दूँगा। मैं जैसे ही घर में घुसा, भाभी ने तुरंत ही दरवाजा बंद कर दिया और भाभी मुझ पर टूट पड़ी, मैं एकदम से भाभी का यह रूप देख कर हैरान रह गया। भाभी मेरे होंठ चूसने लगी और जोरदार चुम्बन करने लगी, मैं तो पागल हो गया भाभी की इस हरकत से !

मैं भी भाभी का साथ देने लगा और हम दोनों एक दूसरे से चिपक गए। मेरे होंठ उसके होंठों की तरफ बढ़े और हम दोनों के होंठ एक हो गए और हम दोनों के लब मधुर मिलन करने लगे, हम दोनों मदहोश हो गए, कम से कम 15 मिनट तक हम चूमाचाटी करते रहे, मैं उसके होठों को चूसता रहा..

फिर मैं भाभी के चूचे दबाने लगा और साड़ी के ऊपर से ही सहलाने लगा। भाभी पूरी गर्म हो चुकी थी और मैं भी गर्म हो चुका था, भाभी ने मुझे कस के बाहों में भर लिया। मैंने भी भाभी को जोर से अपनी बाँहों में भर लिया, थोड़ी देर हम दोनों ऐसे ही लिपटे रहे, फिर भाभी ने कहा- चलो नीरव, बैडरूम में चलते हैं।

मैंने भाभी को गोद में उठाया और बैडरूम में ले गया, उसको बैड पर लिटा दिया और उसके ऊपर आ गया और फिर से उसके होठों पर अपने होंठ रख दिए।

मैं उसके माथे पर, गाल पर, होंठ पर, वक्ष पर चुम्बन कर रहा था, अब मैंने उसकी गर्दन पर चूमा तो वो पागल सी हो गई, मेरे बालों में हाथ घुमाने लगी।

उसने साड़ी पहनी थी, मैं बलाउज के ऊपर से ही उसके बूब्स पर किस करने लगा, दबाने लगा.. उसे बहुत अच्छा लग रहा था, वो मेरे सर को पकड़ कर जोर से अपने वक्ष पर दबाने लगी। अब मैं धीरे धीरे नीचे आने लगा, पर भाभी ने एकदम से करवट बदल ली और भाभी मेरे ऊपर चढ़ गई, मुझे चूमने लगी।

हम दोनों एक दूसरे की जीभ चाट रहे थे..

फिर भाभी ने मेरी शर्ट के बटन खोल दिए और मेरी छाती पर हाथ फेरने लगी, भाभी आहिस्त आहिस्ता मेरे पैरों की तरफ जा रही थी... अब भाभी ने मेरी पैंट का बटन खोल दिया और मेरी पैंट पूरी न निकालते हुए सिर्फ घुटनों तक ही उतारी, मेरा लंड एकदम खड़ा हो चुका था, भाभी मेरी चड्डी के ऊपर से ही मेरे खड़े लंड को जोर से दबाने लगी, फिर भाभी ने धीरे से मेरे लंड को कच्छे से बाहर निकाला। वो मेरा लंड देख कर एकदम खुश हो गई जैसे काफी देर बाद लंड को देखा हो।

भाभी ने मेरे लंड को हाथ में लिया और मुट्ठी में भर कर आगे पीछे करने लगी, मेरे लंड को वो बड़े प्यार से सहला रही थी, मुझे बहुत अच्छा लग रहा था, मैं तो जन्नत की सैर कर रहा था, क्योंकि पहली बार किसी औरत ने मेरे लंड को छुआ था। मेरे मुँह से अह्ह्ह्ह अह्ह्ह की आवाजें निकल रही थी।

फिर मैंने भाभी से कहा- मैं आपकी चूत को चाटना चाहता हूँ।

भाभी ने अपनी टांगें उठा कर मेरे मुंह की तरफ कर दी, भाभी ने साड़ी पहन रखी थी। अब भाभी का मुँह मेरे लंड की तरफ था और टाँगें मेरे मुँह की तरफ, मैंने भाभी की जांघों पर हाथ फेरा और फिर वहाँ पर चुम्बन करके चाटा तो वो सिसकारियाँ भरने लगी।

मैंने उसकी साड़ी को ऊपर उठाया और उसकी चूत पर हाथ फेरने लगा, वो मीठी सिसकारियाँ भर रही थी। मैंने बिना पैंटी उतारे उसकी चूत पर चुम्बन करना शुरू कर दिया, फिर मैंने धीरे से उसके पेंटी निकाल दी।

दोस्तो, मैंने उसके बदन का सिर्फ एक ही कपड़ा उतारा, सिर्फ पेंटी, उसकी चूत जिस पर थोड़े हल्के से बाल थे, उसको चूमने लगा। वो बिल्कुल पागल हो गई और मेरा सर जोर अपनी जाँघों के बीच में दबा दिया, मैं उसकी चूत को चूस रहा था अपनी जीभ डाल के..

मैं उसकी चूत की खुशबू से पागल हो गया और उसे बेहताशा चूस रहा था, किस कर रहा था।

बहुत देर तक मैं उसकी चूत से प्यार करता रहा, उसने अपनी जांघों के बीच मुझे झकड़ लिया था, मेरा सर तो हिल भी नहीं रहा था, उधर भाभी मेरे लंड को बड़ी बेरहमी से दबा रही थी, मुझसे बर्दास्त नहीं हो रहा था..

मैंने भाभी से कहा- मेरा लंड मुंह में लेकर चूस !

लेकिन भाभी ने मना कर दिया और मैंने भी ज्यादा जबरदस्ती नहीं की, मैं तो भाभी की बुर बड़े मजे से चाट रहा था और अपनी जीभ से चोद रहा था, अब भाभी झड़ने लगी और भाभी ने अपना काम रस छोड़ दिया, भाभी के मुंह से अह ओह्ह आआअह्ह आआह्ह्ह की आवाजें निकलने लगी और मेरा सर जोर से दबा दिया और जोर जोर से झड़ने लगी। मैंने भाभी की चूत चाट चाट कर भाभी का सारा काम रस पी लिया।

भाभी अभी तक मेरा लंड सहला रही थी, मुझे जन्नत जैसा लग रहा था। भाभी जोर जोर से मेरा लंड आगे पीछे कर रही थी और फिर मेरे लण्ड से वीर्य निकलने लगा, वीर्य की धार सीधी भाभी के मुँह और बड़े बड़े चूचों पर पड़ी, भाभी का मुँह पूरी तरह से भीग गया। फिर भाभी मेरे ऊपर बैठ गई, मेरे होंठों पर किस करने लगी और मुझे अपनी बांहों में भर लिया, मैं भी रेशमा भाभी की पीठ पर हाथ फेरने लगा..

भाभी अपनी गांड से मेरा लंड को रगड़ रही थी, जिससे मेरा लंड ज्यादा अकड़ कर खड़ा हो गया, मेरा लंड भाभी की गांड को छू रहा था, तभी भाभी ने मेरा लंड हाथ में लिया और अपनी चूत के छेद पर रख दिया और मेरे लंड पर बैठ गई, मेरा पूरा लंड एक ही झटके में भाभी की चूत में घुस गया, जिससे मुझे दर्द होने लगा और भाभी को भी दर्द हो रहा था।

वो बोली- मर्र र्रर्र गई नीरव, तेरा लंड तो बहुत मोटा और लम्बा है। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।

फिर भाभी मेरे ऊपर ही लेट गई। थोड़ी देर तक हम ऐसे ही लेटे रहे. फिर अचानक भाभी के मोबाइल की रिंग बजी। भाभी का मोबाइल बैड से दूर था तो भाभी मेरे ऊपर से उतर गई.. इस बात से मुझे बहुत गुस्सा आया, मगर क्या करता..

भाभी फोन पर बात करने लगी और फिर फोन बंद करते हुए मुझे कहा- नीरव, जल्दी से कपड़े पहन लो।

मैंने कहा- भाभी, बताओ तो सही क्या हुआ..?

तो वो बोली- मेरे पति का फोन था, मेरे सास-ससुर घर आने वाले हैं.. और थोड़ी देर में ही घर आ जायेंगे।

फिर मैंने जल्दी से कपड़े पहने और उदास हो कर वापस आने लगा तो भाभी ने फिर मुझे अपनी बाहों में भर लिया और मेरे होंठों पर एक चुम्मा लिया..

तो दोस्तो, देखा आपने मेरी किस्मत को ! चूत के दरवाजे पर होकर भी चुदाई का मजा नहीं ले सका मैं !

अगर किसी औरत या लड़की को मुझ पर तरस आता है क्या?

मालिया और साशा की चुदाई

मालिया और साशा की चुदाई

एक का नाम मालिया था और दूसरी का नाम साशा था, दोनों आई, मैंने साशा को पसंद किया, मतलब जिसके लाल बाल थे उसको ! मेरा दोस्त ने अपने एक घर की चाबी दे दी कहा- अगर मन करे तो वहाँ चले जाना तुम दोनों ! एक माली है, उससे बोल देना कुछ मंगवाना होगा तो, और ऐश करना।

फिर वो मालिया को लेकर अपने फार्म हाउस चला गया। हम भी चले गए पहले हम होटल में गए अच्छा सा खाना आर्डर किया, फिर खाकर मैंने उससे पूछा- वेयर यू वांट टू गो विद मी, होटल और हाउस? (तुम मेरे साथ कहाँ जाना चाहोगी, होटल में या घर में?)

उसने कहा- लेट्स गो एनी वेयर यू वांट ! (जहाँ तुम जाना चाहो, वहाँ चलते हैं।)

रास्ते में मैंने उससे पूछा- यू नो हिंदी? (क्या तुम हिंदी जानती हो)

उसने कहा- या सम बत नो मच ! (हाँ जानती हूँ लेकिन ज्यादा नहीं)

फिर मैं साशा को लेकर अपने दोस्त के घर पहुँच गया, वहाँ पर माली था, मैंने उसे दारू की बोतल लाने को कहा पर उसने कहा- साहब बोतल अंदर भी रखी है काफी सारी, आप देख लीजिये।

हम कमरे के अंदर चले गए। थोड़ी देर बाद माली एक बोतल, दो गिलास और कुछ सामान लेकर आया और मेज पर रख कर चला गया।

साशा ने केप्री और टॉप पहन रखा था, उसने दोनों गिलास में पेग बनाये, उसने पानी या सोडा नहीं डाला और कहा- टेक फर्स्ट ग्लास विदआउट वाटर ! (पहला पेग बिना पानी के पियो)

थोड़ा कड़वा लगा पर मजा आ गया, दारू भी लाइट ही थी।

उसके बाद मैंने उसकी जांघों पर हाथ रख दिया और सोफे पर ही उसके ऊपर लेट गया फिर उसके होंठों पर होंठ रख दिए। उसने भी मेरा साथ देते हुए मुझे अपने ऊपर लिटा लिया और मेरे बालों में हाथ फेरते हुए मेरे चुम्बनों का जवाब देने लगी। फिर मैं किसिंग करते करते अपने हाथ उसकी चूचियों पर ले गया और दबाने लगा।

फिर साशा ने मेरी टी-शर्ट उतार दी और अब वो मेरे ऊपर आ गई और मेरी छाती पर चूमने लगी, फिर छाती से हुए पेट पर और फिर नीचे आकर मेरी पैंट भी खोल दी और कच्छे के ऊपर से लंड सहलाने लगी, फिर लंड को बाहर निकाल लिया और अंडरवियर को मेरे से अलग कर दिया।

लंड पूरा खड़ा हो चुका था, उसने लंड को हाथ में लिया खाल को नीचे किया और गोलियों से होते हुए टोपे तक चाटने लगी, ऐसे ही पूरा लंड चाटने लगी। फिर टोपे के चारों तरफ़ जीभ फेरने लगी, इस तरह पहली बार कोई लड़की मेरा लंड चूस रही थी। फिर वो मेरा पूरा लंड मुँह में ले गई और अंदर तक डाल के चूसने लगी, कभी टट्टे चूसती तो कभी लंड को !

ऐसे ही करते करते दस मिनट में उसने लंड चूस के सारा माल अंदर ही गटक लिया।

फिर मैंने उसका टॉप उतार दिया, उसने सफ़ेद रंग की ब्रा पहन रखी थी, मैं ऊपर से ही उसके चूचे दबाने लगा। फिर मैंने उसकी ब्रा भी उतार दी और उसकी नंगी चूचियाँ मेरी आँखों के सामने थी, एक निप्पल को मैं मुँह में लेकर चूसने लगा और दूसरे को दबाने लगा, कभी निप्पल चूसता तो कभी चूची मुँह में भर लेता, तो क्भी दबाने लगता तो कभी निप्पल को चुटकी से खींचता और मसलता।

वो भी पूरी मदहोश होने लगी। बोलने लगी- ओह्ह आआअहह आआआआअ फ़क आआअ फ़ास्ट सक इट कम ओन फ़ास्ट !

फिर मैं नीचे बढ़ा और उसके बदन को सहलाते चूमते हुए, उसकी केप्री भी उतार दी, उसने सफ़ेद रंग की ही पैंटी पहन रखी थी, मैंने उसकी पैंटी के ऊपर से ही उसकी चूत को चूमा, फिर उसकी पैंटी भी निकाल दी और उसकी चूत में जीभ डाल दी। मैं जीभ से उसकी चूत चोद रहा था, साशा मेरा सर पकड़ के अपनी चूत पर दबाये जा रही थी।

फिर 15 मिनट में उसने भी अपना सारा पानी छोड़ दिया, हम अभी लेट कर आराम ही कर रहे थे कि माली अंदर आ गया, वो पायजामे के ऊपर से ही लंड को सहला रहा था, कहने लगा- साहब, मेरी बीवी काफी समय पहले ही गुजर गई, इसलिए मन तो बहुत करता है पर डरता हूँ कि किसी को पता चल गया तो ! मालिक आते हैं तो दरवाजा बंद करके करते हैं, आज दरवाजा खुला था तो मैं अपने आप को देखने से रोक नहीं पाया।

वो बेचारा माली 50-55 की उम्र का बूढ़ा लग रहा था जैसे कोई भूखा आदमी खाने को मांग रहा हो।

साशा ने मेरे से पूछा- वट ही वांट्स? (इसे क्या चाहिए?)

मैंने कहा- ही वांट्स टू फ़क यू ! (वो तुम्हें चोदना चाहता है।?

साशा ने कहा- बट आई वांट एक्स्ट्रा चार्ज फॉर इट ! (मैं इसके लिए और पैसे लूँगी।)

मैंने उसे अन्ग्रेजी में कहा- अच्छा ठीक है ! मैं और पैसे दे दूँगा।

वो माली साशा के पास आया, साशा ने उसके पायजामे का नाड़ा खोल दिया और उसका लंड बाहर आ गया, साशा उसे हाथ में लेकर सहलाने लगी।

माली ने कहा- साहब, मैडम से बोलिए न कि थोड़ा चूस भी दे !

मैंने कहा साशा से कहा- ही वांट्स तो पुट हिज कॉक इन योर माउथ ! (वो अपना लंड तुम्हारे मुँह में देना चाहता है।)

साशा ने कहा- इट्स स्मेल वैरी बेड ! (ये बहुत बुरा बदबू मार रहा है)

मैंने कहा माली से कि वो बाथरूम से अपने को अच्छे से साफ़ करके आ जाये उसके बाद वो तुम्हारा लंड चूसेगी, माली बाथरूम में गया और एक मिनट बाद नंगा बाहर आया, वो शायद नहा कर आया था, आते ही उसने साशा के बाल पकड़े और अपना लंड उसके मुँह में दे दिया।

साशा ने भी उसका लंड ले लिया और चूसने लगी करीब दस मिनट हुए और माली का लंड खड़ा हो गया था, सामान्य सा लंड था उसका।

मैंने उसको कहा- तुम इसकी चूची चूसो, तब तक मैं इसके आगे लंड डालता हूँ।

मैंने साशा को लेटा दिया और उसकी चूत के छेद पर लंड रख कर धक्का दिया और एक ही बार में आधे से ज्यादा लंड उसकी चूत में चला गया।

माली साइड में आकर उसकी चूची दबा रहा था, मैंने भी देर न करते हुए एक और धक्का दिया और मेरा पूरा लंड उसकी चूत में था।

मैंने भी एक चूची मुँह में ले ली और चूसने लगा, माली भी उसकी चूची चूस रहा था।

दस मिनट तक उसको आराम से चोदने के बाद मैंने कहा माली से- अब इसके सर के पास आकर इसके मुँह में लंड डाल दे !

उसने ऐसा ही किया और अपना लंड साशा के मुँह में डाल दिया। ऐसा सीन मैंने अब तक ब्लू फिल्मों में ही देखा था और यह मेरा पहला थ्रीसम यानि तीन लोग एक साथ था।

फिर मैं अपना लंड अन्दर बाहर कर के चोदने लगा और दोनों हाथों से उसकी दोनों चूचियाँ कस के दबा ली। अब तो वो भी छटपटाने लगी थी, मैं और तेज उसको चोदने लगा। पाँच मिनट में साशा झड़ गई, मैं अभी नहीं झड़ा था इसलिए मैंने अपना लंड निकाल लिया और साशा से कहा- आई वांट तो फक्क योर एस ! (मैं तुम्हारी गांड चोदना चाहता हूँ?

उसने कहा- ओके !

मैंने अपने लंड पर थोड़ी से क्रीम लगाई और साशा के गांड के छेद पर रखा और अंदर डाला। मेरा लंड साशा की गांड में सरकता चला गया, शायद बहुत बार करवा चुकी होगी, इसके बाद मैं उसकी गांड में लंड अंदर बाहर करता चला गया।

तभी माली ने कहा- साहब मुझे भी मौका दीजिये।

तभी मुझे भी एक चीज याद आई, मैंने माली को लेट जाने को कहा। माली लेट गया, साशा भी समझ गई कि उसे क्या करना है और वो माली का लंड अपनी चूत पर रख कर बैठ गई, साशा उछल उछल कर चुदने लगी, मैंने साशा से कहा- यू आर रेडी फॉर अनल आल्सो? (क्या तुम पीछे भी लेने के लिए तैयार हो?)

साशा के कहा- या, आई एम् ऑलवेज रेडी ! (हाँ मैं हमेशा तैयार ही रहती हूँ)

और मैंने देर न करते हुए अपना लंड साशा की गांड में फिर से डाल दिया। अब साशा बस बैठी हुई थी और माली नीचे से उसे गांड उठा उठा कर चोद रहा था और मैं पीछे से उसकी गांड मार रहा था।

ऐसा करते करते करीब दस मिनट हुए होंगे, माली उसकी चूत में ही झड़ गया और कुछ देर में मैं भी उसकी गांड में ही झड़ गया।

फिर हम शांत होकर लेट गए।

मैंने माली से जाने को कहा तो वो चुपचाप अपने कपड़े लेकर चला गया। फिर साशा ने एक एक पेग और बनाया और पीने के के बाद नहाने चली गई।

मैं भी कुछ देर बाद बाथरूम में गया, साशा बाथटब में बैठकर नहा रही थी, मैं भी वही चला गया, उसमें बैठ गया और उसके होंठों पर होंठ रख कर चूसने लगा।

पाँच मिनट उसके होंठ चूसने के बाद मेरा लंड फिर खड़ा गया। मैंने उसे कुतिया स्टाइल में आने को कहा, मैंने उसके चूत पर लंड रखा और अंदर सरका दिया, एकदम आराम से अंदर-बाहर जा रहा था, 5 मिनट चूत में लंड अंदर बाहर करने के बाद मैंने अपना लंड निकाल और उसकी गांड में सरका दिया और आगे उसकी चूचियाँ पकड़ ली और उसकी गांड अपने लंड से चोदने लगा।

वो बस आआहह ह्ह्ह्ह आआ आआअह्ह्ह्ह्ह करके मजे लिए जा रही थी और करीब दस मिनट उसकी गांड चोदने के बाद जब मुझे लगा कि मैं झड़ने वाला हूँ तो मैं उठा और अपना लंड उसकी गांड से निकाल कर उसके मुँह में दे दिया और उसका सिर पकड़ कर उसके मुँह को चोदने लगा और कुछ ही देर में मैंने अपना सारा माल उसके मुँह में ही डाल दिया।

फिर हम अच्छे से नहाये, मैंने कुछ रुपए साशा को दे दिए माली के नाम के !

उसके बाद साशा चली गई अपने ठिकाने की ओर मैं अपने घर !

मेरे दोस्त ने बाद में बताया कि उसने तो एक घंटे में ही मालिया को भेज दिया था।

तो दोस्तो, कैसी लगी आपको मेरी कहानी, यह मेरे जीवन की दूसरी घटना थी कि मैंने अपनी मर्जी से और इच्छा अनुसार वेश्या के साथ सम्भोग किया, इससे पहले मैंने एक नेपालन स्कूल की लड़की को चोदा था, वो गयारहवीं में पढ़ती थी,लेकिन वह घटना मैं आपको फ़िर कभी बताऊँगा, तब तक आप कहानियों का आनन्द उठाइए।

अज्ञात-यौवना संग संसर्ग

अज्ञात-यौवना संग संसर्ग

यह घटना उस वक्त की है जब मेरी शादी को करीब एक वर्ष हुआ था। पहले तो मैं अपने मोहल्ले में काफी रिजर्व रहता था, कुछ गिने-चुने लोगों से ही मेरी बातचीत होती थी, मोहल्ले में मेरी छवि एक शरीफ़ और शर्मीले इंसान की थी। पर जबसे मेरी पत्नी आई तो धीरे-धीरे मेरे घर में मोहल्ले की कई औरतें और लड़कियों का आना जाना शुरू हो गया। कुछ तो मेरी पत्नी के अच्छे और मिलनसार स्वभाव के कारण और कुछ उसके सिलाई-कढ़ाई में निपुणता के कारण, दिन भर लड़कियों और महिलाओं का जमघट लगा रहता था और दिन तो कोई परेशानी नहीं होती क्यूंकि मैं खुद घर में नहीं रहता था पर रविवार के दिन भी घर में एकांत नहीं मिलता था।

थोड़ी खीझ तो होती थी पर यह सोचकर चुप रहता था कि एक रविवार के लिए मैं अपनी पत्नी के छः दिनों की व्यस्तता और दिनचर्या को क्यूँ भंग करूँ। इस बहाने से मोहल्ले में मेरी पहचान का दायरा भी तो बढ़ रहा था। और ऐसे ही जिंदगी चल रही थी।

एक दिन मेरे मोबाइल पर एक मैसेज आया- भाई-साहब, मैं आपके साथ सेक्स का अनुभव लेना चाहती हूँ, क्या मुझे यह मौका मिलेगा?

मैं चौंक गया, कौन हो सकती है यह? ना जान, ना पहचान, सीधा सेक्स का आमंत्रण?

दो दिनों तक तो मैं इस उधेड़बुन में लगा रहा कि कौन है यह।

तीसरे दिन फिर संदेश आया- भाई-साहब, मैं अभी भी आपके जवाब के इंतजार में हूँ। प्लीज, सिर्फ एक बार।

अब मैंने भी जवाब देना उचित समझा, मैंने जवाब दिया- बोलती हो भाई-साहब, और सेक्स की मांग करती हो? पहले अपनी पहचान तो बताओ?

उसका जवाब आया- आप रिश्ते में तो मेरे कोई नहीं हैं, पर मोहल्ले के नाते से मैं तो आपको भाई ही कहती हूँ। और अब तो आप समझ ही गए कि मैं आपके ही मोहल्ले की हूँ। इससे ज्यादा मैं अपनी कोई पहचान नहीं बता सकती और प्लीज आप भी ना पूछें।

मैं सन्नाटे में आ गया, मोहल्ले की औरत होकर ऐसी हिम्मत !

फिर मैंने लिखा- ठीक है, मैं तैयार हूँ, पर मेरे साथ ही सेक्स करने की क्यूँ सोची तुमने?

उसका जवाब आया- पहली वजह तो यह है कि आप शरीफ़ आदमी हैं तो मेरी बदनामी नहीं होगी, इतना भरोसा है आप पर। दूसरी वजह यह कि भाभी यानि आपकी पत्नी के मुँह से सुन चुकी हूँ कि आप बहुत एक्सपर्ट हैं सेक्स में।

मैं फिर चौंका। इसका मतलब है कि यह औरत मेरी पत्नी की पहचान वाली है, मैं थोड़ा सतर्क हो गया, कई बातें दिमाग में घुमड़ने लगी। जैसे क्या औरतें आपस में इतनी खुलकर सेक्स के बारे में बातचीत कर लेती हैं?

सोचा चलो पत्नी से पूछने पर इस औरत के बारे में पता चल जाएगा। पर एक डर भी मन में समा गया कि पूछने पर पत्नी को इस बात का शक हो सकता है कि उसके पहचान वाली किसी औरत का मुझसे भी संपर्क है। मैंने इस विचार को तत्काल ही अपने दिमाग से निकाल फेंका।

मैंने उसे मैसेज किया- क्या तुम अपने पति से संतुष्ट नहीं हो?

जवाब आया- मेरी शादी नहीं हुई है अभी। मैं बिल्कुल कुंवारी हूँ। और शादी से पहले सिर्फ एक बार सेक्स का अनुभव लेना चाहती हूँ।

मैंने पूछा- मैं तुम्हें पहचानूँगा कैसे?

उसने कहा- पहचानने की जरुरत ही नहीं है। मैं आपको बताऊंगी कि कब, कहाँ, और कैसे हमें मिलना है। आप तय समय पर आयेंगे और हम अपना काम निपटायेंगे। हाँ, आपसे फिर मैं आग्रह कर रही हूँ कि सेक्स करने के समय भी आप मेरा चेहरा देखने की जिद और प्रयास नहीं करेंगे।

मैंने हार मान ली- ठीक है, जो तुम्हारी मर्जी। जब तुम्हें सहूलियत हो मुझे याद करना।

फिर करीब एक महीना बीत गया। इस एक महीने में उसका दो बार मैसेज आया जिसमे वो अपनी बेबसी व्यक्त कर रही थी कि उसे अनुकूल मौका नहीं मिल रहा है।

लगभग एक महीने के बाद उसका मैसेज आया- दो-चार दिनों में मैं कोई प्रोग्राम बनाती हूँ, पर आपसे एक प्रार्थना है कि आप नाराज ना होना।

फिर एक सप्ताह के बाद उसका मैसेज आया- आज शाम को गाछी में मिलिए, ठीक छः बजे।

मैंने जवाब भेजा- ठीक है।

मेरे मोहल्ले से उत्तर की ओर एक बहुत बड़ा और घना आम का बगीचा है जिसे सभी लोग गाछी कहते हैं। आम के मौसम के बाद वो इलाका लगभग सुनसान और वीरान ही रहता था। वैसे भी बगीचा चूंकि मोहल्ले के आखिर में था इसलिए उस ओर किसी का भी आना-जाना नहीं होता था। मैं भी उसके जगह के चुनाव से खुश था।

मैं शाम होने का इंतजार करने लगा। कुछ खुशी, कुछ उत्तेजना, कुछ डर, कुछ रोमांच, कुछ रहस्य का सा महसूस हो रहा था। आखिर मैं एक अज्ञात लड़की के साथ सेक्स करने जा रहा था।

साढ़े पाँच के बाद मैं एक चक्कर गाछी की ओर लगा आया। यह सुनिश्चित करने के लिए कि आज के दिन उस ओर कोई चहल-पहल तो नहीं है।

फिर जब छः बजे तो मैं मोहल्ले की पूरब दिशा की ओर से एक लम्बा चक्कर काट कर गाछी में पहुँचा। शाम का धुंधलका छा गया था पर चांदनी रात होने के कारण रोशनी भी थी। फिर भी मैं पेड़ों के आड़ लेता हुआ आगे बढ़ रहा था और मेरी नजरें उनको ढूँढने में लगी थी।

अचानक एक पेड़ के पीछे मुझे कुछ हलचल सी महसूस हुई। मेरी धड़कन बढ़ गई। मैं वहीं खड़ा रहा। तब मैंने देखा कि एक लड़की मेरी ओर आ रही है, वो सलवार-सूट में थी पर चेहरा दुपट्टे से नकाब की तरह ढके हुए थी।

वो लड़की आगे आई और बोली- मैं ही आपके मोहल्ले की हूँ। और आपसे सेक्स के लिए आई हूँ।

मैंने हाँ में सर हिलाया। उस लड़की के शरीर का कोई खास अंदाजा नहीं लग पा रहा था क्योंकि वो बहुत ढीले-ढाले लिबास में थी।

मैंने पूछा- अब बताओ, कैसे और क्या करना है?

इस पर मेरे मोहल्ले वाली ने हंसकर कहा- अरे यही अनुभव करने तो मैं यहाँ आई हूँ, और आप हमसे ही पूछ रहे हैं।

मैं झेंप गया और बोला- मेरा मतलब यह नहीं था।

उसने कहा- आप जैसा चाहें करें !

ऐसा कहकर वो मेरे नजदीक आई और मेरे सीने से लग गई।

मैंने कहा- यह तो ठीक है कि मैं तुम्हारा चेहरा नहीं देखूँगा पर इससे तुम चुम्बन का मजा नहीं ले पाओगी।

उसने कहा- कोई बात नहीं चुम्बन के बगैर ही मैं आपसे करवाऊँगी।

मैंने कहा- ठीक है, पर जब मैं तुम्हारे कपड़े उतारूँगा तो तुम भी मेरे कपड़े उतारना।

वो तैयार हो गई।

पहले तो मैंने कपड़े के ऊपर से ही उसके उरोजों को दबाना शुरू किया। उसके शारीरिक गठन और स्वास्थ्य की तुलना में काफी बड़े-बड़े थे उसके उरोज बड़े और कठोर। मैं मस्त होकर उसे दबाने लगा। उसके मुँह से भी आह.. उह... निकलने लगी।

उसने अपने हाथ में पकड़े थैले से एक चादर निकाली और एक पेड़ के नीचे ऐसे जगह पर बिछाई जहाँ पूरी चाँदनी खिल रही थी। चाँदनी रात और हसीना का साथ, दोस्तो, आप सिर्फ महसूस कर सकते हैं मेरी खुशी और आनन्द के आलम को।

हम दोनों उस चादर पर बैठ गए, मैंने उसके कुर्ते का हुक खोलना शुरू किया। उसने भी मदद की, उसका सारा ध्यान इस बात पर था कि कपड़े उतारते हुए चेहरा ना बेनकाब हो जाए।

खैर मैंने भी उसका चेहरा देखने का कोई प्रयास नहीं किया, उसके पेट और पीठ का हिस्सा देखकर एहसास हुआ कि वो कितनी गोरी है। दूध की तरह सफ़ेद और चमकीला जिस्म देखकर तो मैं पागल हो गया। फिर मैंने उसकी ब्रा निकाली। उसके दोनों यौवन-कपोत उछलकर बाहर आ गए। क्या खूबसूरत लग रहे थे, दोस्तों क्या बताऊँ।

मैं कुछ देर तक तो प्यार से उसे सहलाता रहा। इतने सुन्दर स्तन मैंने अब तक अपने जीवन में नहीं देखे थे। इतने सुन्दर स्तन को सिर्फ सहलाने का मन कर रहा था, दबाने का नहीं। डर लग रहा था कि कहीं दबाने से इनकी सुंदरता कम ना हो जाए।

कुछ देर सहलाने के बाद मैं उसकी सलवार का नाड़ा खोलने लगा। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।

तो उसने मेरा हाथ थाम लिया और बोली- अभी आप अपना कमीज उतारने दीजिए।

मैंने कहा- मैंने कब मना किया है, उतारो।

उसने मेरी कमीज उतारी और मेरे बालों से भरे सीने को चूम लिया और अपना चेहरा सीने में छुपा लिया। मैंने उसे बाहों में भर लिया।

उसने कहा- जरा जोर से।

मैंने उसे भींच लिया, वो मेरे बाहों में सिमट सी गई। सीने में सिमटे हुए ही अब उसने अपना हाथ बढ़ाकर मेरे लिंग पर पैंट के ऊपर से ही रख दिया और दबाने लगी।

मैंने कहा- बाहर निकाल कर प्यार करो ना !

वो मेरे पैंट का हुक और चेन खोलने लगी और मैं उसकी सलवार का नाड़ा। कुछ ही देर में हम दोनों बिल्कुल वस्त्र-विहीन हो गए। मैंने उसके गुलाबी योनि को सहलाना शुरू किया। क्या मखमली एहसास था। वो भी मेरे लिंग बड़े प्यार से सहला रही थी और कभी-कभी दबा भी देती थी। हम दोनों ही सुखद स्पर्श की अनुभूति में सराबोर हो रहे थे। हम दोनों की ही आँखें बंद थी।

मैं उसके स्तनों को चूसने लगा। उसके मुँह से सिसकारियाँ निकलने लगी और जोश में आकर उसने मेरे लिंग के चमड़े को आगे-पीछे करके हिलाने लगी।

मैंने कहा- इसे किस तो करो।

उसने कहा- सिर्फ किस करूँ या कुछ और भी..?

मैंने कहा- आज के दिन तो यह तुम्हारा है, जो मर्जी हो करो।

इतना सुनते ही उसने मेरे लिंग को गप से अपने मुँह में ले लिया और चूसने लगी। दो तीन बार ही चूसने पर उसे उबकाई सी आने लगी और उसने लिंग को मुँह से बाहर निकाल दिया।

मैंने कहा- तुम्हे अच्छा नहीं लगा तो क्यूँ मुँह लिया तुमने?

उसने कहा- भाभी ने कहा था कि आपको लिंग चुसवाने में बहुत मजा आता है। मैंने सोचा कि जब मैं अपनी खुशी के लिए आप जैसे शरीफ़ आदमी से मजे ले सकती हूँ तो मेरा भी तो फर्ज बनता है कि आपको भी पूरी खुशी दूँ।

मैंने कहा- ऐसी कोई बात नहीं है, जो तुम्हें पसंद हो, वही किया करो। आज का हमारा मिलन हम दोनों के लिए यादगार बन जाए।

इस पर वो बोली- नहीं भैया, चूंकि मेरी ख्वाहिश थी कि शादी से पहले भी एक बार मैं सेक्स का मजा लूँ इसलिए मैंने आपको अनुरोधकिया, वरना आज के दिन को मैं कभी भी याद नहीं रखना चाहूँगी और शायद इसलिए ही मैंने आप जैसे शरीफ़ इंसान का चुनाव किया।

मैंने कहा- जैसी तुम्हारी मर्जी ! पर कम से कम अब तो मुझे भैया मत कहो।

वो मुस्कुराने लगी।

उसने फिर मेरे लिंग को चूमना शुरू किया, चूमते-चूमते चाटना भी शुरू कर दिया। मैंने मना भी किया पर वो नहीं मानी और लिंग के जड़ से नोक तक अपनी जीभ फिरा कर चाटती रही। चाटते-चाटते फिर उसने मेरे लिंग को मुँह के अंदर ले लिया और मजे से चूसने लगी।

अब मुझे भी अपनी जिम्मेवारी का एहसास हुआ और बगैर अपने लिंग को उसके मुँह से निकाले ही मैं घूमकर अपने मुँह को उसकी योनि के पास लाया और उसके योनि को चूम लिया। वो चिहुँक गई और मस्ती में आकर अपने कमर को उठाने लगी।

पहले तो मैंने उसकी योनि को ऊपर से चाटा फिर बाद में उसके दोनों फांकों अलग किया, अपनी जीभ को घुसेड़ कर जीभ से ही मजे लेने लगा।

वो मस्ती में इस्स्स... इस्स्स करने लगी। मैं भी उसके योनिरस के स्वाद और सुगंध से मदहोश होता जा रहा था।कुछ ही देर चाटने पर उसके योनि से भरपूर रसों की बरसात हो गई।

कुछ देर और सहलाने और चिपटने के बाद वो बोली- अब देर क्यूँ कर रहे हैं, कीजिये न?

मैंने कहा- धीरज रखो !

और फिर हम सीधे हो गए और मैं उसकी दोनों टांगों के बीच में आ गया। उसकी योनि गीली होकर चिपचिप हो गई थी। मेरे लिंग में भी काफी तनाव था। मैंने अपने लिंग को उसके योनिद्वार से सटाया ही था कि उसने अपनी कमर उचकाई। इससे लगा कि वो कितनी उतावली हो रही है मिलन के लिए।

मैंने कहा- देखो पहली बार में थोड़ा दर्द होगा, क्या बर्दाश्त कर लोगी?

वो बोली- हाँ भैया कर लूँगी। यह सब सोचकर ही तो फैसला किया था मैंने सेक्स के लिए।

मैंने कहा- फिर भैया?

वो मुसकुराती हुई बोली- रहने दो भैया, मैं कुछ और नहीं बोल पाऊँगी।

मैंने भी हामी भरी। अब मैंने लिंग को सही जगह पर सेट किया और थोड़ा दबाया। लिंग का अग्रभाग यानि सुपाड़ा योनि द्वार में फंस गया। काफी कसी थी उसकी योनि, आखिर पहली बार सेक्स करवा रही थी वो। उसका चेहरा तो दिख नहीं रहा था पर लगा जैसे वो दर्द से घिर गई है। पर वो खुश थी। मैं रुक कर उसके स्तनों को प्यार करने लगा।

कुछ देर बाद वो बोली- भैया क्या इतना ही बड़ा है आपका लिंग?

यह उसका इशारा था आगे बढ़ने के लिए, मैंने हल्के से एक धक्का लगाया। लिंग करीब दो इंच और अंदर चला गया, उसने गर्दन हिलाना शुरू किया और छटपटाने लगी। मैं रुक गया और फिर से उसके स्तनों की घुंडी को उंगली से गोल गोल घुमाने लगा।

दो मिनट बाद वो बोली- जब दर्द होना ही है तो बार-बार दर्द देने की क्या जरुरत है? एक ही बार में पूरा डाल दीजिए ना।

मैं तो उसके हिम्मत से दंग रह गया। अब मैंने अपने लिंग को थोड़ा बाहर निकाला और एक जोरदार धक्का लगाया। पूरा का पूरा लिंग जड़ तक उसके योनि में धँस गया था।

उई...

और वो मछली की तरह मचलने लगी। मैंने हिम्मत करके उसके दुपट्टे के ऊपर से ही उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए। पहले तो वो थोड़ी चौंकी पर कुछ बोली नहीं। फिर उसने मेरे सिर को अपने हाथों से पकड़ कर थोड़ा उठा दिया और बोली- मैं अपना दुपट्टा होंठों से ऊपर करुँगी, आप मुझे चूम सकते हैं पर प्लीज आगे नहीं।

इतना कहकर उसने अपने दुपट्टे को होंठों के उपर से हटाया। उसके उपरी होंठ के ठीक ऊपर दाईं तरफ तिल का निशान था जो बहुत प्यारा लग रहा था। मैं उसके होंठो को चूमने लगा। चूमने क्या चूसने लगा। इतना रसभरा था कि पूछो मत। मैं तो खो गया उसके होंठों में !

कुछ देर बाद जब वो सामान्य हुई तो कमर उचका कर इशारा किया। अब मैंने अपने कमर को आगे पीछे करना शुरू किया। शुरू में तो धीरे-धीरे फिर जैसे ही लिंग योनि में व्यवस्थित हुआ, अपने आप ही स्पीड बढ़ गई। मेरे हर धक्के का जवाब वो भी नीचे अपनी कमर उचका कर देने लगी। पन्द्रह-बीस धक्कों के बाद ही उसकी योनि ने फिर से रस छोड़ दिया और वो कुछ निढाल सी हो गई।

मैंने पूछा- थक गई क्या?

तो वो बोली- थक तो गई, पर आप करते रहिये, अच्छा लग रहा है, आपके लिंग का घर्षण मेरे तन-मन को बहुत खुश कर रहा है। मुझे उम्मीद नहीं थी कि सेक्स में इतना मजा आता है। जब तक आपका मन नहीं भरे करते रहिये।

मैं उसकी खुशी और हिम्मत से अभिभूत हो गया। अब तो चिकनाई भी बढ़ गई थी, सटासट सटासट इंजन के पिस्टन की तरह मेरा लिंग अंदर-बाहर होने लगा।

उसके मुँह से आह... उह... जोर से... और जोर से... की अस्फुट आवाज आ रही थी। उसकी आवाज से मैं और भी उत्साहित हो रहा था और जोश में धक्के पर धक्के लगा रहा था।

दस-बारह मिनट तक धक्के लगा-लगा कर मैं भी थकने लगा। लेकिन पता नहीं क्यूँ मेरा स्खलन नहीं हो रहा था। मैं थक कर थोड़ी देर के लिए रुक गया।

उसने पूछा- क्या हुआ?

मैंने कहा- अब मैं थक गया।

उसने पूछा- पर आपका डिस्चार्ज हुआ क्या?

मैंने कहा- अभी तक तो नहीं।

फिर करीब दो मिनट के बाद मैं फिर शुरू हुआ और अब वो भी फिर से कमर उचका कर मेरा साथ देने लगी। मेरी स्पीड भी तेज होने लगी। करीब तीस-बत्तीस धक्के के बाद भी मेरा स्खलन नहीं हुआ तो सोचने लगा कि आखिर बात क्या है।

उसका हाथ मेरे चूतड़ों को सहला रहा था, कभी कभी वो नाख़ून भी गड़ा देती थी। अचानक उसने अपनी एक उंगली मेरी गुदा के अंदर घुसा दी और इसके साथ ही मैं इतना उत्तेजित हुआ कि मेरे लिंग से जोर-जोर से पिचकारी चलने लगी। मेरी पिचकारी को अपने योनि में महसूस करते ही उसने मुझे कसकर भींच लिया। आठ-दस पिचकारी के बाद मैं भी निढाल होकर उसके शरीर पर ही लेट गया।

हम दोनों का पूरा शरीर पसीने से भीग गया था, दोनों ही हाँफ रहे थे। थोड़ी देर तक ऐसे ही लेटे रहने के बाद दोनों अलग हुए, मैंने एक बार फिर उसके होंठों को चूम लिया।

अब कुछ ठंडक महसूस होने लगी। आखिर नवंबर का महीना था और वो भी खुली चाँदनी रात। हम दोनों फिर एक बार एक-दूसरे से लिपट गए। उसका बदन अभी भी भट्ठी की तरह तप रहा था। बेड-शीट पर काफी जगह में खून के धब्बे का निशान हो गया था।

उसने कहा- भाभी कह रही थी कि आप उनको पीछे से भी करते हैं और आपको इसमें बहुत मजा आता है?

मैंने कहा- हाँ, अच्छा तो लगता है, पर पीछे से तुम्हारा क्या मतलब है?

तो उसने अपनी योनि पर हाथ रखकर कहा- पीछे से भी यहीं, आप कुछ और नहीं समझिएगा और मैं तैयार हूँ। आपने मुझे इतनी खुशी दी, मैं भी आपको खुश करके ही वापस जाने देना चाहती हूँ।

मैंने उसे सीने से लगा लिया और उसके नितंबों को सहलाने लगा और वो भी मेरे लिंग को पकड़ कर चूसने लगी।

कुछ ही देर में मेरे लिंग में उत्थान आ गया। मैंने उसके नितम्ब पर एक थपकी देकर इशारा किया, वो घोड़ी के स्टाइल में आ गई। उसकी योनि तो गीली हो ही रही थी, मैंने भी अपने लिंग को उसके योनि पर सेट किया और एक जोरदार धक्का मारा। पूरा का पूरा लिंग एक बार में ही उसकी योनि में घुस गया, अब मैं धक्के लगाने लगा, वो भी अपने कमर को पीछे की ओर करके अधिक से अधिक मेरे लिंग को अपने अंदर लेने की कोशिश करने लगी।

हर धक्के में आनंद-विभोर होकर आह... उह... करने लगी। कुछ देर बाद हम दोनों ने ही चरम-सुख को पा लिया।

फिर हम लोगों ने कपड़े पहने और वापस जाने को हुए।

वो एक बार फिर मेरे सीने से लग गई और बोली- मुझे आपके साथ बहुत सुख मिला। मैं बहुत आभारी हूँ आपकी। और आप ये राज़ हमेशा राज़ ही रखेंगे इसके लिए भी आपका बहुत बहुत शुक्रिया। और हाँ, आप मुझे पहचानने की भी कोशिश नहीं करेंगे, प्लीज !

और हम लोग अपने-अपने घर लौट आए।

दोस्तो, यह थी मेरी कहानी। मैं अब तक उस अज्ञात यौवना के बारे में नहीं जान सका। और न ही कभी अपनी पत्नी से उसके बारे में जानने की कोशिश की। हाँ एक लड़की जरूर है मेरे मोहल्ले की जिसके होंठ के ऊपर तिल का निशान भी है और उसका शारीरिक गठन भी वैसा ही है जो उस दिन आई थी। पर यकीन के साथ नहीं कह सकता कि वही है। अब जो भी हो... !!!!!

मेरे दोस्त की सेक्सी गर्लफ़्रेन्ड

मेरे दोस्त की सेक्सी गर्लफ़्रेन्ड

मेरा नाम राहुल है, मैं देखने में सांवला हूँ, कद 5 फीट 6 इंच है, बदन गठीला है, 25 साल का हूँ।

यह कहानी 3 साल पहले की है, मैंने बहुत लोगों की कहानियाँ पढ़ी तो मैं भी प्रेरित हुआ कहानी लिखने को ! आपको अगर कहानी अच्छी लगे तो मेरा उत्साहवर्धन करें !

मैं अब मुंबई में रहता हूँ, पर यह कहानी तब की है जब मैं भोपाल में एक फ़्लैट किराये पर लेकर रहता था, वहाँ मेरे कई दोस्त थे, एक दोस्त था सौरभ, उसकी एक हॉट गर्लफ्रेंड थी, रिया नाम था था !

19 साल की रिया के बारे में क्या कहूँ, 5 फीट 5 इंच लम्बी, गोरी और 36-28-34 का उसका फिगर था, उसे देखते ही लण्ड में एक अजीब सुरूर हो जाता था।

मैं फ्लैट किराये पर लेकर अकेला रहता था पर सौरभ का अपना घर था, वो अपनी गर्लफ्रेंड को अपने घर ले नहीं जा सकता था, तो वह मेरे फ्लैट पर ही उससे मिलता था, कमरा बंद कर के, दरअसल वो चुदाई करता था, मैं फ्लैट बाहर से बंद करके चला जाता था और वो लोग अन्दर 2-3 घंटे तक चुदाई-मस्ती करते थे, जब मुझे कॉल करते, तब मैं आकर बाहर से फ्लैट खोलता था, और वो लोग चले जाते थे।

जब भी रिया मेरे यहाँ आती तो मुझे एक सेक्सी निगाह से देखती थी और कभी कभी अपनी चूची मुझसे सटा देती थी। मेरा दोस्त इस बात से अनभिज्ञ था, मैं उसकी आँखों में अपने लिए सेक्स देख चुका था, तब मुझे भी कभी कभी मन करता था कि इसकी चुदाई कर ही डालूँ, लेकिन फिर दोस्त की गर्लफ्रेंड का ख्याल करके छोड़ देता था।

जब वो लोग चुदाई करके निकलते थे तो रिया संतुष्ट नहीं दिखती थी, वो बार बार मुड़ कर मुझे देखा करती थी, बाय कहती और फ्लायिंग किस देती थी, मेरा दोस्त सोचता था कि ऐसे ही कर रही होगी।

एक दिन की बात है, एग्ज़ाम ख़त्म हुए और कॉलेज में छुट्टियाँ हो गई थी, सब लोग घर जा चुके थे, मैं कुछ दिनों के बाद जाने वाला था। सौरभ अपने परिवार के साथ कहीं टूर पर चला गया था। दिन के दो बज रहे थे, गर्मी का दिन था, मैं लोअर पहने फ्लैट में था। अचानक दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी, मैंने जाकर देखा तो रिया थी, गर्मी से परेशान, पसीने में भीगी हुई टॉप और जींस में गजब की दिख रही थी।

मैं उसे अकेला देख कर हैरान हो गया।

खैर, रिया अन्दर आई, मैंने दरवाजा बंद किया, मैं जब पानी लेकर आया तो उसने देखा टॉप निकाल दिया था और ब्रा के ऊपर से मेरा मेरा पतला तौलिया लपेटा हुआ था।

मैंने बोला- यह क्या है?

तो कहने लगी- गर्मी बहुत है।

मेरा लण्ड कब खड़ा हो गया, मुझे पता भी नहीं चला। नीचे जब मैंने देखा तो मेरा 7 इंच का लंड पूरा फॉर्म में खड़ा था।

मैं उसे छिपाने के लिय बैठ गया।

उसने अचानक मेरे लंड पर अपना हाथ रख दिया और बताने लगी- सौरभ मुझे कभी संतुष्ट नहीं कर पाता ! उसका लंड पतला और छोटा है, मैं तुम्हारे लिए पागल हो गई हूँ, मुझे तुम्हारे शरीर की गठीलापन बहुत आकर्षित करता है।

मुझे कुछ भी समझ में नही आ रहा था, वो मेरे लंड को सहलाती जा रही थी और मैं मदहोश होता जा रहा था। उसने मेरे लण्ड को लोअर से निकाल लिया !

अचानक वो मेरे लंड को अपने मुँह में लेकर चूसने लगी, अब मैं बिल्कुल गर्म हो चुका था और उसके मुख की गर्मी से मेरा लंड उफान पर था, मैंने उसे अपनी बाँहों भर लिया और चूमाचाटी करना चालू कर दिया।

उसके होंट इतने अच्छे थे, मुझे बहुत मज़ा आ रहा था, वो पूरा सहयोग कर रही थी जैसे वो आज मुझसे चुदने के ही पूरे मूड में आई थी।

मुझे भी बहुत दिनों से कोई चूत नसीब नहीं हुई थी, मैं उसे पूरे जोश से चूमने लगा, उसके होंट, उसका चेहरा लाल हो गया। किस करते करते मैं उसकी चूचियों को सहलाने लगा और उसकी ब्रा का हुक खोल दिया, वो मेरे सामने अधनंगी हो गई। मै उसे फिर से किस करने लगा और उसकी चूचियों को मसलने लगा, उसकी चूचियाँ बहुत अच्छी गोलाई में थी और बहुत सुन्दर सुडौल थी।

मैं चूचियों को अपने मुँह में लेकर चूसने लगा, वो मदहोश हो रही थी। मैं बहुत देर तक उसकी चूचियों को चूसता रहा।

अब मैंने उसकी जींस और पैंटी निकाल दी तो देखा कि उसकी चूत पानी छोड़ रही है, मैं उसकी चूत को चाटने लगा, वो ताजा ताजा ही अपनी चूत को चिकनी चमेली बना कर के आई थी।

वो उई अह करने लगी, मैंने अपना काम चालू रखा, जीभ से उसकी फ़ुद्दी को चोदने लगा, वो सिसकार रही थी- ओ राहुल, तुम बहुत अच्छा कर रहे हो, और चूसो मेरी फ़ुद्दी को, सौरभ तो फ़ुद्दू है चुदाई करने में ! मेरी चूत को फाड़ डालो, लण्ड से चोदो ! तुमसे चुदने को मैं कब से बेताब थी, आज मेरी इच्छा पूरी हो रही है !

फिर से उसकी चूत से पानी निकल आया, वो बहुत हॉट हो रही थी, अब मैंने अपना लण्ड जो उफान पर था, रिया की गीली योनि में घुसाने लगा, मेरा लौड़ा मोटा था, तो वो अह इह करने लगी, बोली- धीरे से डालो !

मैंने कहा- रिया रानी आज तो मैं तेरी चूत को फाड़ दूंगा !

थोड़ा झटका दिया तो आधा लंड अन्दर चला गया, वो दर्द में मज़े ले रही थी, मैंने इस बार थोड़ा और तेज़ धक्का दिया और पूरा लंड अन्दर चला गया।

वो इस बार चिल्लाई- मेरी चूत फट गई रे !

मैं कुछ देर तक ऐसे ही रुके रहा और उसकी चूची को सहलाने लगा, थोड़ा चूमा, चाटा तो रिया थोड़ी शांत हुई, उसके बाद मैंने लण्ड को अन्दर बाहर करना चालू किया। उसकी चूचियाँ हिल रही थी, मैं उसकी चूचियों को पकड़ कर चोदने लगा। मैंने उसे फिर कुतिया बना कर चोदा तो पूरा लंड अन्दर जा रहा था।

वो 'और जोर से चोदो ! और चोदो !' किए जा रही थी।

मैंने जोर जोर से धक्का देना चालू कर दिया, मुझे ऐसी चूत पहले कभी नहीं मिली थी, मैं खूब मज़े लेकर चोद रहा था। वो बहुत साथ दे रही थी। उसको चोदने में जो मज़ा आ रहा था, क्या बताऊँ ! उसकी चूत पूरी तरह से गद्देदार थी और कसी हुई थी।

सौरभ उसका पहला प्रेमी था और उसे संतुष्ट नही कर पाता था पर आज वो चुदने के पूरे मज़े ले रही थी।

फिर हम लोगों ने आसन बदला, वो ऊपर आ गई और मस्ती में अपनी कमर को हिला हिला कर चुदवाने लगी। कुछ देर के बाद मैं झड़ने लगा, मैंने कहा- रानी, मैं आ रहा हूँ।

उसने कहा- अन्दर ही डालो !

और मैं झड़ गया, पूरा वीर्य उसकी चूत में गिरा दिया और हम लोग अलग हो गये।

फिर वो मेरे ऊपर ही गिर गई और मुझे जोर से सीने से लगा दिया और बोलने लगी- आज मैं संतुष्ट हुई, ऐसे ही लण्ड की मुझे जरूरत है।

उसके बाद मैंने फिर आधे घंटे के बाद चोदा और वो चली गई। उसके बाद जब भी मौका मिलता वो मुझसे चुदने को चली आती, और मैं भी उसे हर बार संतुष्ट करके भेजता था।

तहकीकात में चुदाई

तहकीकात में चुदाई 

दोस्तो, हर कोई चाहता है कि उसकी जिन्दगी में उसे सब कुछ मिले पर क्या यह सच में होता है?

मैंने भी चाहा और हुआ भी !

चलो हम बात पर आते हैं ! मेरा नाम एमिनेम है और यह मेरा नकली नाम है पर मैं यही इस्तेमाल करता हूँ ! चलो नाम में क्या रखा है ! यह कहानी क्या पता आपको पसन्द आये भी या ना ! मैंने अपनी जिन्दगी में कई काण्ड किये पर आपको जान कर हैरानी होगी कि मैं पुलिस वाला हूँ। मेरी शादी नहीं हुई है।

यह कहानी दिल्ली की है, सर्दियों का वक्त था और मैं और मेरे कई सहयोगी पुलिस थाने में थे, उस दिन कुछ काम था। तभी एक काल आई कि जीबी रोड पर कुछ हुआ है। मैं और कुछ पुलिस वाले वहाँ गये, हमने देखा कि खूब चुदाई हो रही थी। लड़कियों के चाहे या बिना चाहे दलाल और ग्राहक लोग उनकी चूत में लण्ड पेल रहे थे।

मुझे गुस्सा आया पर थोड़ा मजा भी कि इस पल का मुझे इन्तजार था। फिर सारे लड़के पकड़े गये। जहाँ पर यह काम हो रहा था, वो जगह किराये की थी। हमने मालिक का पता ले लिया।

रात हो चुकी थी, इसलिए आराम किया। अगले दिन मैं अकेले गया उस जगह के मालिक से मिलने !

मालिक का घर बहुत बड़ा था, मैंने घण्टी बजाई। तभी एक सेक्सी लड़की अन्दर से निकली। उसने सलवार सूट पहना था। उसने पूछा- आप कौन हो?

मैंने कहा- जी बी रोड पर एक कमरे के बारे में पूछताछ करने आया हूँ मैं !

तभी पीछे से एक औरत आई, उसकी माँ लग रही थी। भई बिल्कुल घस्सड़ लग रही थी, बिल्कुल रांड थी। लेकिन यह सब मैंने दिमाग से निकाला, मैंने उसे नमस्ते की और घर के अन्दर गया।

उसने अपनी बेटी को चाय बनाने के लिये कहा तो वो चली गई।

मैंने कहा- आपका ही कमरा है ना जीबी रोड पर?

उसने कहा- हाँ ! तो क्या?

मैंने गुस्से में कहा- पता है वहाँ क्या होता है? वहाँ चुदाई होती है।

पर तभी मैंने देखा कि उस पर मेरी बात का ज्यादा कोई असर नहीं हुआ !

मैंने कहा- आपके पति कहाँ हैं?

तो वो रोते रोते बोली- अब वो नहीं रहे।

फिर मैंने कहा- घर का खर्चा कैसे चलता है?

उसने कहा- बस छोटी मोटी नौकरी करके।

मैं समझ गया कि यह ही वो सब काम कराती है पैसों के लिये।

तभी उसकी बेटी आई चाय लेकर, उसने ढीले कपड़े पहने थे। जब वह चाय देने के लिये झुकी तो मैंने उसके कमीज के गले से उसकी ब्रा देखी, तभी मेरा लंड खड़ा हो गया और शायद वो औरत भी समझ गई कि मैं हरामी हूँ। सबने चाय पी, फिर बेटी बर्तन उठा ले गई। मैंने कहा- हम कुछ नहीं जानते, अब सीधे थाने में बात होगी और आज शाम को ही आना !

उस शाम मैं उस कमरे या यों कहूँ कि उस कोठे की मालकिन का इन्तजार कर रहा था, मैं अकेला था थाने में, तभी वो आ गई।

मैंने जो सोचा उसका उल्टा हुआ। वह एक सेक्सी पोशाक में आई।

मैंने मन ही मन कहा- केस जाये भाड़ में, अब तो हम मजे करेंगे।

वह आई और बोली- साहब कैसे हो?

मैंने कहा- ठीक हूँ।

फिर बातें शुरु हुई, मैंने कहा- आपके कमरे में चुदाई का काम होता है, पता है आपको !

वो बोली- आपको चुदाई में इन्टरेस्ट है?

मैंने कहा- बहुत ज्यादा ! लेकिन आप यह क्यों पूछ रही हो?

तभी उसने अपने कपड़े उतारने शुरु किये। पता नहीं क्यों पर मुझे यही चाहिये था। मेरा लंड खड़ा हो गया, मैंने सोचा कि अब यही हो जाए। फिर मैं उसके कपड़े उतारने लगा और वो मेरे। हम दोनों एक दूसरे को चाटने लगे। मैं तभी उसकी चूचियाँ मसलने लगा। बहुत मजा आ रहा था। वह सिसकारियाँ लेने लगी, तभी मौका देख कर मैंने चूत में लन्ड डाल दिया। वो चिल्ला पड़ी। फिर मैंने उसे 20-22 धक्के मारे कि हम दोनों झड़ गए। पर उसकी चीख से चौकिदार उठ गया जिसकी रात की ड्यूटी थी। वह अन्दर आया और देखा कि मैं चूत मार रहा था। मैंने सोचा कि अब पंगा पड़ेगा।

पर उसने कहा- सर अकेले अकेले?

मेरी जान में जान आई, मैंने कहा- तुम भी आ जाओ !

उसने तुरंत कपड़े उतारे और आ गया मेरे बाद चौकी दार ने चोदा फ़िर चौकीदार ने दो फ़ोन किए, उसने फोन करके और लोगों को बुला लिया।

फिर 4 बंदे और आ गए, हमने कहा- आज चूत फाड़ दो इसकी ! हमने 3-3 के ग्रुप में एक बार में उसके तीनों छेदों में 3-3 लंड घुसाये। उस औरत ने कहा- मैं मर जाऊँगी, अब तो मुझे छोड़ दो ! मेरी एक बेटी है वो अनाथ हो जाएगी।

मैंने कहा- हाँ तेरी बेटी ! क्या नाम है उसका? बढ़िया चोदने लायक माल है।

वो बोली- उसका नाम तनवी है।

मैंने कहा- अब वो चुदेगी मेरे लोड़े से।

और मैंने कहा- अब छोड़ दो इस बहन की लौड़ी को।

फिर अगले दिन मैं उसके घर गया तो दरवाजा तनवी ने खोला, पूछा तो उसने बताया कि उसकी मम्मी घर पर नहीं थी।

मैंने सोचा अच्छा मौका है, मैंने पूछा- कहाँ गई है तेरी मम्मी?

तनवी ने कहा- डॉक्टर के पास ! "क्यों? मैंने कहा।

उसने कहा- कल रात आपने मेरी मम्मी की चूत मारी, उसकी वजह से मम्मी की चूत छिल गई है, दवाई लेने गई है।

मैंने कहा- मतलब, तुम्हें सब पता है कल जो भी हुआ।

उसने कहा- हाँ ! और मम्मी ने यह भी बताया कि आप मुझे चोदने आज आओगे।

मैं बिल्कुल हैरान था, बिना कुछ सोचे समझे मैंने उसके सारे कपड़े फाड़ दिये और उसके चूचे मसलने लगा। उसे भी मजा आने लगा। तभी मैंने उसे चूमना शुरु किया और बहुत देर तक दोनों चूमा चाटी करते रहे। फिर मैंने अपने विशाल लौड़े को उसकी चूत में डाला तो वो कहने लगी- आपने मेरी मम्मी की जो हालत की है, वही मेरी कर दो !

मैंने कहा- ठीक है।

और फिर मैं धक्के देने लगा और आठ घन्टे तक मैं उसके घर रुका, पूरा समय चुदाई का दौर चला। उतनी देर में वो कई बार चुद-चुद कर झड़ चुकी थी और उसकी चूत से खून आने लगा था।

फिर मैंने रुमाल से चूत साफ़ की और उसे अपने साथ बाथरूम में लेजाकर अपने हाथों से नहलाया।

ऐसी चुदाई का सिलसिला एक साल तक चला, मैं उसकी माँ के सामने ही तनवी को नंगी करके चोदता था।

Thursday, 23 January 2014

चूत चुदाई

चूत चुदाई  

मेरा नाम अमित है। आम आम तौर पर जैसे लड़के होते हैं, सब कुछ फटाफट बोल देने वाले, लेकिन मैं ऐसा नहीं था, मैं बहुत संकोची स्वभाव का था, यही कारण था कि मुझे चूत पहली बार लेने में इतनी देर हो गई। मेरी कितनी सारी लड़कियों से दोस्ती हुई, उनसे हर तरह की बातें हुई लेकिन मैं कभी उनमें से किसी को चोद नहीं पाता था क्यूंकि मैं बहुत संकोची था, जबकि मेरे सारे दोस्त बड़े ही चुदक्कड़ थे। दो से तीन दिनों की दोस्ती में ही चूची वगैरह दबाना शुरू कर देते थे और सात आठ दिनों के अन्दर ही चोद के किनारे कर दिया करते थे।

मैं संकोची ज़रूर था लेकिन हर अवसर पर मुझे यह उम्मीद रहती थी कि शायद इस बार कुछ हो जाये। इसी उम्मीद से लड़कियों से

दोस्ती करता था लेकिन हर बार बिना कुछ किये ही वापिस आ जाता था। कई बार तो मैं लड़कियों के बिलकुल करीब तक गया लेकिन संकोच के मारे कुछ कर न सका।

एक बार की बात है, मेरे चाचा अपने किसी दोस्त की शादी में जा रहे थे, उन्होंने मुझसे भी साथ चलने को कहा। क्योंकि मैं जानता था की शादी में लड़कियाँ पटाना आसान होता है, मैं चाचा के साथ गया। चाचा के दोस्त अनुज के घर पहुँचते ही मुझे एक लड़की दिखाई पड़ी, वो इतनी सुन्दर थी कि अगर एक बार अपने मुँह से लंड बोल देती तो मेरा लंड झर-झर के झरना हो जाता।

मैंने सोच लिया था कि इसकी चूत तो किसी भी हाल में फाड़ कर रहूँगा चाहे जो हो जाये। उसकी मादक मुस्कान देख कर ही मेरा लंड खड़ा हो जाता था। पहले दिन तो उससे मेरी कोई बात नहीं हुई, मेरी हिम्मत ही नहीं पड़ी उससे बात करने की, पर दूसरे दिन, मुझे याद है, मैंने वहाँ बैठे एक लड़के से पानी माँगा।

थोड़ी देर बाद वो लड़की मेरे लिए पानी लाई। मैं आश्चर्य चकित हो गया कि यह क्या? लगता है भगवान् ने मेरी सुन ली।

मैंने मौका गंवाया नहीं और उसके हाथों पर अपनी उँगलियाँ फेरते हुए उससे गिलास ले लिया और उससे उसका नाम पूछा। उसने बताया कि उसका नाम रंजना है। उसी दिन हम दोनों की दोस्ती शुरू हो गई।

दूसरे दिन मैं नहाने जा रहा था, मैंने अपने सारे कपड़े उतार दिए थे, बस पजामा पहना हुआ था और बाथरूम की ओर जा रहा था कि तभी वो पीछे से आ गई। उसने मुझे देखा और हंसते हुए वापस चली गई। नहा धोकर खाना पीना हुआ फिर उसके बाद हम दोनों ने साथ में लगभग एक घंटे तक कैरम खेला। उसी समय मेरी उससे किसी बात पर नोकझोंक हुई, मैंने उसका हाथ पकड़ लिया। मेरा लंड

अकड़ कर बम्बू हो गया। मैं तुरंत बाथरूम गया और खूब हचक कर मुट्ठ मारी।

मैं रात को छत पर गया। मैं टहल रहा था कि अचानक वो भी छत पर आ गई। उससे मेरी काफी देर बात हुई।

उसने कहा- आज जब तुम्हारा हाथ छुआ तो पता चला कि तुम्हारा हाथ कितना मुलायम है।

मैंने कहा- तुमसे ज्यादा नहीं ! तुम्हारा तो बिल्कुल रुई की तरह है।

यह कहते हुए मैंने उसका हाथ पकड़ लिया और उसे सहलाते हुए मैंने धीरे से उसकी चूची पर हाथ रखा। उसने शरमाते हुए मेरा हाथ हटा दिया। फिर मैंने उसकी चूची एक बार जोर से दबाई। इस बार उसने मेरे हाथ पर हाथ रख दिया लेकिन हटाया नहीं। मैं धीरे धीरे उसकी चूची दबाने लगा और उसके ऊपर के सारे कपड़े उतार दिए। मैं धीरे धीरे उसकी चूची चूसने लगा।

उसकी चूची चाटते चाटते मैं उसका मक्खन सा गोरा बदन और पेट चाटने लगा। मेरा लंड लोड लेने लगा क्योंकि उसके मुंह से मादक आहें निकल रही थी- आह...आहा.... आहा... अंह..ओह..

धीरे-धीरे मैंने उसे पूरी नंगी कर दिया। अब बस वो चड्डी में लेटी चिंहुक रही थी और मैं उसे पूरे बदन पर और होठों पर किस करता रहा। थोड़ी देर में वो मेरे कपड़े भी खींचने लगी और अंत में मेरी चड्डी उतार कर मेरा लंड गप्प से अपने मुँह में भर कर चूसने लगी। मेरा लंड तेजी से पानी छोड़ने लगा और फिर जल्दी ही मेरा लंड बहुत तेज तेज झड़ने लगा। वो मेरे लंड से निकलता सारा पानी पीती चली गई। यह देख कर मेरा लण्ड फिर से खड़ा हो उठा और फिर मैं उसे एक ज़ोरदार किस करने लगा।

अब रंजना बहुत जोश में आ चुकी थी, उसने अपनी गोरी-गोरी बिना झांट की बुर पर मेरा हाथ रख दिया, मैंने हाथ हटा लिया और जीभ से उसकी बुर चाटने लगा। वो मरी कुतिया की तरह चीखने लगी, उसे बहुत मज़ा आ रहा था, उसकी बुर से ढेर सारा पानी निकल रहा था।

मैंने तुरंत ही मुँह हटा लिया और उसकी बुर में अपनी उंगली पेल दी। वो खूब जोर से चिल्लाई लेकिन मैं उंगली पेलता रहा। वो बहुत मस्त हो गई। मौका देख कर मैंने तुरंत उसकी बुर में अपना लंड डाल दिया। वो खूब जोर से चिल्लाई लेकिन मैं उसे खूब जोर जोर से चोदता चला गया। वो चीखने लगी और बोली- अमित, मेरी बुर फाड़ डालो ! आज पूरी बुर फाड़ कर मेरे अन्दर घुस जाओ।

बस फिर क्या था, मैं उसकी बुर फाड़ता चला गया।

उस दिन में मैं दो बार झड़ा और वो सिर्फ एक बार ! लेकिन उस दिन मैंने उसकी गांड फाड़ चुदाई की। अब भी हम लोग मिलते हैं, तब मैं उसकी गांड फाड़ फाड़ के चुदाई करता हूँ और उसे भी अपनी बुर फड़वाने में बहुत मज़ा आता है, वो कहती है कि उसे मेरे लंड में जन्नत दिखाई देती है। मुझे भी उसकी बुर किसी मिठाई की दुकान से कम नहीं लगती है। मिठाई खा खा कर मैं बोर हो सकता हूँ लेकिन उसकी बुर चाटना शुरू करूँ तो दिन भर चाटता रह जाऊँ, फिर भी मन न भरे

डर और दर्द में भी मज़ा है

डर और दर्द में भी मज़ा है

जब मैं एक एक करके अपने कपड़े उतार रही थी तब अजीब सी बेचैनी हो रही थी ! पूरे कपड़े उतरे तो शीशे के सामने मैंने खुद को देखा ! हे भगवान ! पूरे बदन में बिजली सी दौड़ गई.. बता नहीं सकती कि क्या चल रहा था मेरे मन में ! डर और रोमांच का मिलाजुला सा अनुभव हो रहा था। क्या किया था मैंने या क्या करने जा रही मैं तो मेरी ऐसी हालत हो रही थी।

असल में इस दीपावली के बाद मेरे पति तो अपने व्यापार के सिलसिले में टूअर पर चले गये और मैं मिलन के विरह में तड़प रही थी। वो दिवाली से एक दिन पहले ही टूअर से आए थे मेरे लिए बहुत सारे उपहार लेकर, दो महंगी साड़ियाँ एक भारी हीरे जड़ा नेकलेस ! लेकिन मुझे जो चाहिये था उनसे, उसके लिये उनके पास वक्त नहीं था ! मैंने पहल करने की कोशिश भी की लेकिन वो तो दीपावली पूजने के बाद बेडरूम में अपना लैप्टॉप खोल कर बैठ गए और मैं जैसे 'जल बिन मछली...'

मेरे पति का ज्यादा समय अपने बिजनेस टूअर में ही निकलता है, मेरा एक बेटा है जो बोर्डिंग स्कूल में पढ़ता है। मैं अकेली अपना समय कैसे बिताती हूँ, मेरे सिवा कौन जान सकता है ! ऐसे में अपना अकेलापन काटने के लिए मैंने अपने पति की अनुमति से एक नवयौवना छात्रा को अपने घर में पेईंग गैस्ट रख लिया। अरे यह मैं भी क्या बातें करने लगी ! ये बातें फ़िर कभी !

तो मैं अपने पूरे वस्त्र हटा कर दर्पण के सामने खड़ी सोच रही थी कि जो मैं करने जा रही हूँ वो मैं कर पाऊँगी? और यदि कर भी लिया तो यह क्या ठीक होगा?

मैं अपना समय बिताने के लिए इन्टर्नेट का प्रयोग करती हूँ, मेरी पेईंग गैस्ट लड़की श्रेया ने मेरा एक मित्र भी बनवा दिया था जिससे मैं अपना सुख दुख चैट पर सांझा कर लिया करती थी। मेरे पति के आने से पहले श्रेया भी अपने घर चली गई थी तो अकेलापन काटने के लिए मैं अपने मित्र से कुछ कामुक सलाह मांग रही थी तो उन्होंने मुझसे यह करने को कहा:

रात को दस बजे या उसके बाद जब तुम्हें लगे कि तुम्हें कोई नहीं देखेगा, तुम अपने सारे कपड़े उतार कर पूरी नंगी होकर एक जलती मोमबत्ती लेकर अपनी घर की छत का एक चक्कर लगा कर आओ। इसमें तुम्हें कैसा मजा आता है मुझे बताना !

तो यही साहसिक सेक्सी काम करने के लिए ही मैंने अपने कपड़े उतारे थे।

अब आगे:

मैंने रूम के एसी का तापमान थोड़ा बढ़ा दिया, एक मोटी लम्बी मोमबत्ती जलाई और माचिस अपने हाथ में लेकर अब मैं सीढ़ियों की ओर बढ़ने लगी।

मेरे बदन पर कपड़ों के नाम पर एक धागा भी नहीं, मुझे हल्की ठण्ड भी लग रही थी और यह भी जानती थी कि ऊपर छत पर कितनी ठण्ड होगी। बाल खुले, हाथ में मोमबत्ती और सांसें तेज ! दिल में कुछ अलग ही कुछ होने लगा, मैं बता नहीं सकती ! धड़कनें तेज़ ... उत्तेजना, भय और रोमांच के कारण मेरे विशाल स्तन थोड़े सुकड़ कर सीधे खड़े हो गए थे, मेरी उठती गिरती सांसों के साथ ऊपर नीचे हो रहे थे...

मैं सीढ़ियाँ चढ़ने लगी... पहले माले पर पहुँची... मेरी तेज़ सांसों से मोमबत्ती बुझ गई तो मैंने फिर से जला दी...

आगे बढ़ी दूसरी मंजिल पर पहुँची, जैसे जैसे मैं छत के निकट पहुँच रही थी, मेरे बदन में झुरझुरी हो रही थी, सांसें और तेज़ हो रही थी...

जब छत के दरवाजे पर पहुँची तो अचानक एक भय मेरे मन में समा गया... हिम्मत नहीं कर पा रही थी कि सारी दुनिया के सामने ऐसे... कैसे? चाहे मैं जानती थी कि इस वक्त मुझे देखने वाला कोई नहीं होगा पर फ़िर भी डर तो था ही ना कि अगर किसी ने देख लिया तो !

फ़िर सोचा यही डर तो इस खेल में रोमांच और आनन्द भरेगा, मैंने मन में ठान लिया... आज डर और मज़ा एक साथ... मेरे उरोज जो अपने ही वजन के कारण कुछ कुछ लटकने लगे थे, इस समय किसी पहाड़ की दो चोटियों के साथ पूरे तने खड़े थे, सारे शरीर पर रोंगटे खड़े हो गये थे !

हमारा घर बहुत बड़ा है तो छत भी काफ़ी बड़ी है शायद 4500-5000 फीट ! आसान नहीं था इस ठण्ड में नंगी होकर मोमबत्ती हाथ में लेकर पूरी छत का कम से कम एक चक्कर लगाना... पर मैंने अपने उसी मित्र को कही हुई बात याद की कि 'मैं कर लूँगी !' और एक तरफ़ से मैंने धीरे धीरे चलना शुरु किया। हवा तेज़ थी, मेरे घुंघराले बाल उड़ रहे थे... मोमबत्ती कहीं बुझ ना जाए इसलिए मेरी निगाहें उसी पर थी, एक हाथ से ढक कर उसे हवा से बचाने का प्रयास करती मैं चली जा रही थी धीरे धीरे.. बड़ा मज़ा आ रहा था.. मन में वो भय बरकरार था ही कि अगर किसी ने देखा तो क्या...

मैं तो इधर उधर देख भी नहीं पा रही थी कि कोई देख रहा है या नहीं मेरा सारा ध्यान तो मोमबत्ती पर ही था। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।

आधा चक्कर हुआ होगा कि अचानक हवा का एक तेज झोंका आया और मोमबत्ती बुझ गई और डर के मारे मैंने मोमबत्ती को अपने सीने से लगा लिया, जल्दी जल्दी में उसका पिंघला मोम मेरे दायें स्तन पर गिर गया.. मेरे मुख से चीख निकलने वाली ही थी.. पर मैंने खुद को संभाल लिया... तभी झट से नीचे लेट कर फिर मोमबत्ती जला कर दो मिनट उसकी लपट बढ़ने तक इन्तजार किया.. इधर उधर देखा... मोमबत्ती की लौ को हाथ से ढका और चल पड़ी बाकी बचा आधा चक्कर पूरा करने..

मेरी चूची पर काफ़ी जलन हो रही थी... फिर भी चक्कर पूरा किया। उसके बाद दौड़ते हुए नीचे रसोई में पहुँची...अभी भी मेरे वक्ष के उभार वैसे ही पर्वतशिखरों की भान्ति सिर उठाये खड़े थे.. रोंगटे तो भय, अचरज और सफ़लता के गर्व के कारण और उभर आए थे।

मैंने अपने स्तन पर से मोम उतारा, झट से फ़्रिज़ से बर्फ़ निकाल कर अपनी चूची पर लगाई... थोड़ा अच्छा लगा... जला तो नहीं था पर त्वचा थोड़ी लाल हो गई थी, अब भी थोड़ी जलन थोड़ा दर्द महसूस हो रहा था !

पर मैंने एक बात जान ली कि दर्द में बहुत मज़ा है ! आज पहली बार यह दर्द भी मुझे अच्छा लगा ! मज़ा आया...

यह सब आपबीती भी मैं पूर्ण नग्नावस्था में ही टाइप कर रही हूँ... इस घटना को घटे अभी पाँच मिनट भी नहीं बीते हैं।

मैं बता नहीं सकती.. कितना मज़ा आया इसमें.. आपको विश्वास नहीं होगा.. जब मैं नीचे आई तो मेरी योनि पूरी गीली हो गई थी... इसने पानी छोड़ दिया था...

मैंने खुद भी नहीं सोचा था कि मैं अपने बदन को बिना किसी पुरुष या स्त्री के या खुद के स्पर्श के परम यौनानन्द प्राप्त कर सकती हूँ। मैं अपने उस दोस्त को यही कहूँगी कि मैं बहुत खुश हूँ ! यह एक अलग अदभुत अनुभव रहा !

पर मन के अन्दर एक डर व्याप्त है: 'मुझे उस हालत में किसी ने देखा तो नहीं होगा ना.. अगर हाँ तो...? पर इतने ऊपर कैसे कोई देखेगा इतनी रात में... नहीं ! मेरा डर बेबुनियाद है !

मैं किसे अपना बदन दिखाने जाऊँगी?

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आसान काम नहीं है

आसान काम नहीं है

सुबह दूध वाले भैया को तड़पाने के बाद मैंने अपने मित्र को सारा घटनाक्रम बताया तो उन्होंने मुझे यह साहस भरा काम सफ़लतापूर्वक सम्पन्न करने पर बधाई दी।

लेकिन अब तो मेरे ऊपर जैसे जुनून सवार हो गया था, मुझे कुछ और करना था, मैं अपने उस मित्र के पीछे ही पड़ गई कि कुछ और बताओ जिसमें दर्द में मज़ा हो लेकिन पकड़े जाने का खतरा कम हो !

वो कुछ सोचने लगे। फ़िर उन्होंने बताया- ऐसा करो, एक छोटा गिलास लो चान्दी का ! उसमें साफ़ पानी भर कर फ़्रिज में जमने के लिये रख दो !

"जी, उसके बाद?"

जब गिलास में पूरी बर्फ़ जम जाए तो गिलास को एक मिनट के लिए सादे पानी में रख कर गिलास से बर्फ़ को साबुत निकाल लो और उसके तीखे किनारों को हाथ फ़िरा कर पिंघला कर गोल कर लो !"

मैं आश्चर्यचकित सी उनकी बातें पढ़ रही थी और सोच रही थी इससे क्या होगा?

मैंने पूछा- उसके बाद इस बर्फ़ का करना क्या है?

तो मेरे मित्र ने कहा- रात को रसोई में काम करने से पहले इस लम्बे-गोल बर्फ़ के टुकड़े को बड़े प्यार से अपनी योनि में सरका लेना और उसके ऊपर टाईट पैन्टी पहन कर अपने काम में लग जाना ! शुरु में तो बहुत तकलीफ़ होगी लेकिन तुम सह सको तो सह कर काम करती रहना, ना सह सको तो निकाल देना। अगर तुम इसे अपने अन्दर रखे रही तो यह बर्फ़ तुम्हारी चूत की गर्मी से पिंघलती रहेगी और पानी तुम्हारी पैन्टी से टपकता रहेगा। जब सारी बर्फ़ पिंघल जायेगी तो उसके बाद असली मज़ा आना शुरु होगा। तुम खुद अपना अनुभव मुझे बताना बाद में !

तब मैंने कहा- यह तो ठीक है पर एक बात मैं आपसे कहना चाह रही हूँ।

वे बोले- क्या?

"मैं कल वाला कारनामा आज एक बार दोबारा करना चाह रही हूँ। असल में आज मैं अपने दूसरे यानि बायें स्तन पर मोमबत्ती का गर्म मोम गिरा कर जलन का मज़ा लेना चाह रही हूँ।"

तो उन्होंने कहा- तो ठीक है, अब तुम कल वाला कारनामा ही करो, लेकिन यह बर्फ़ वाला करतब भी इसमें ही शामिल कर लो। जब तुम छत पर जाओ, तभी बर्फ़ को अपने अन्दर रख कर ऊपर से पैन्टी पहन कर जाना !

मैं इसके लिए तैयार हो गई, मन में ठान लिया कि यही करूँगी।

फ़िर जब आराम से बैठ कर सोचा तो मुझे शुरु में तो लगा कि मैं सह नहीं पाऊँगी पर मैंने चान्दी का सबसे छोटा जो बस दो ढाई इन्च लम्बा था, उसे साफ़ करके उसमें साफ़ पानी भर कर फ़्रीज़र में रख दिया। उस वक्त शाम के सात बजे होंगे और बर्फ़ जमने में एक से डेढ़ घण्टा लगना था तो मैं बैठ कर इसी विषय में सोचने लगी कि यह अन्दर चला जएगा, कैसे जाएगा, फ़िसल कर बाहर तो नहीं आ जाएगा? पर सबसे बड़ी बात जो बार बार मेरे दिमाग में कौंध रही थी वो यह कि अगर किसी तरह मैंने इस अंदर घुसा भी लिया तो क्या मैं इसे सह लूँगी?

मेरे मन का डर बढ़ता जा रहा था, पर गलती भी तो मेरी ही थी, मैंने खुद ही तो तकलीफ़देह करतब के लिए आग्रह किया था।

फ़िर मेरे मन में ख्याल आया कि गिलास में बर्फ़ तो जब जमेगी तब जमेगी, अभी तो मेरे फ़िर्ज में ट्रे में काफ़ी क्यूब जमे रखे हैं।

मैं तुरन्त उठी और फ़्रिज में से आइस क्यूब की ट्रे निकाल लाई। उसमें से कुछ क्यूब निकाल कए एक कटोरे में रख लिए। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।

मैंने साड़ी पहनी हुई थी तो मैंने अपनी साड़ी ऊपर करके अपनी पैंटी अपनी चिकनी जांघों पर से फ़िसलाते हुए निकाल दी। मैंने देखा की चूत के छेद वाली जगह से पैन्टी कुछ गीली थी, इन सारी बातों के चलते शायद मेरी चूत पानी छोड़ने लगी थी। मैंने उस गीले स्थान को सूंघ कर देखा, अजीब सी उत्तेजक गन्ध थी, एक बार मन हुआ कि इसे जीभ से चाट कर देखती हूँ, फ़िर सोचा कि पता नहीं इसमें क्या

किटाणु होंगे तो मैंने अपनी पैंटी चाटने का विचार त्याग दिया।

मैं वो बर्फ़ का कटोरा लेकर दीवान पर बैठ गई, अपनी साड़ी चूतड़ों से भी ऊपर करके अपनी टांगें फ़ैला ली।

एक आइस क्यूब लिया और उसे अपनी योनि में डालने का प्रयास किया। बर्फ़ के योनि पर स्पर्श होते ही मैं सिहर उठी। कुछ सेकेण्ड बर्फ़ को योनि के ऊपर ही फ़िराया और फ़िर जब अन्दर डालने की कोशिश की तो आइस क्यूब फ़िसल रहा था। पहले वाला क्यूब छोटा हो चुका था तो मैं एक बड़ा क्यूब लेकर अन्दर धकेला पर नहीं गया, बार बार फिसले जा रहा था.. इस बर्फ़ से मेरी चूत जैअसे जलने लगी थी।

फिर दीवान पर लेट कर मैंने चूतड़ों के नीचे से हाथ लेजा कर प्रयत्न किया, फिर भी नहीं हुआ.. एक तो मेरा गदराया शरीर, पहली बार खुद पर गुस्सा आया कि मैं मोटी क्यों हो गई हूँ?

पर सोचा कि नहीं, करना ही है.. अपने सारे कपड़े उतार कर गाउन पहन लिया लेकिन तब मन में आया कि बर्फ़ के पानी से गाउन गीला क्यों करूँ, गाउन भी उतार कर पूर्णनग्नावस्था में होकर दीवान पर एक पैर रखा एक नीचे जमीन पर, योनि को कपड़े से साफ किया, पैर फैला दिए और बायें हाथ में आइस क्यूब पकड़ कर दायें हाथ से योनि को फ़ैलाया और पूरी ज़ोर से आइसक्यूब अंदर दबा दिया.. पर जल्दी से वो अंदर तो चला गया पर अंदर जाकर आड़ा होकर फ़ंस गया..

ओह माँ ! बता नही सकती.. मेरी फ़ुद्दी बर्फ़ से जल रही थी, मैं तकलीफ़ के मारे उछलने लगी, मेरा पूरा शरीर अकड़ने लगा.. अब मुझे ठंड लग रही है... अब तो मन कर रहा था कि पिछली रात वाली मोमबत्ती को वैसे ही जला कर अपनी जलती बर्फ़ीली चूत में घुसेड़ लूँ.... ऐसा लग रहा था कि किसी ने मेरी अंदर कुछ काफ़ी बड़ा सा लौड़ा डाल दिया हो, या जोरदार मेरी जोरदार चुदाई हो रही है।

मैं दीवान पर लेट गई, मेरी योनि सुन्न हो गई, ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने को जी कर रहा था पर मैंने अपने ही हाथ से अपना मुँह दबा लिया ! जब लगा कि अब नहीं सह पाऊँगी तो उंगली से अंदर से निकालना चाहा पर वो नहीं निकला, मुझे बहुत ठण्ड लग रही थी, मैंने अपने ऊपर कम्बल ले लिया.. फिर भी कुछ फ़र्क नहीं पड़ा, फिर मैं उसे निकालने के लिए जाँघें फ़ैला कर खड़ी हो गई कि अपने आप निकल जाये पर नहीं निकला। उंगली डाल कर देखा तो अन्दर कुछ नहीं था, आइसक्यूब शायद पिंघल चुका था पर अब भी ऐसा लग रहा था कि जैसे अंदर अभी भी है मेरे !

मैं दीवान पर पैर लटका कर बैठ गई, जांघें फैला ली अब अच्छा लग रहा था, जितनी जांघें खोलती, उतना ज्यादा अच्छा लगता !

बहुत मज़ा आ रहा था.. ठंडा ठंडा.. कूल कूल..

तभी मेनगेट की घण्टी बजी !

अरे इस वक्त कौन आ सकता है, इस समय तो कोई नहीं आता, मैं डर गई, कहीं वो सुबह वाला दूध वाला भैया तो नहीं आया होगा? उसे तो पता ही होता है कि मैं अक्सर अकेली होती हूँ घर में ! कहीं उसने यह तो नहीं सोचा होगा कि मैं उसे सुबह अपनी चूचियाँ दिखा कर उसे निमंत्रण दे रही थी कि आकर मुझे चोद जाना !

फ़िर मेरे मन में आया कि नहीं, ऐसा नहीं हो सकता, मैंने तो उसके सामने यही प्रदर्शित किया था कि जो हुआ, अनजाने में भूलवश हुआ !

मैंने झट से गाउन उठा कर पहना, वहाँ बिखरे साड़ी, कपड़े उठा कर छिपाए, बाल ठीक किए, दरवाजा खोला तो सामने श्रेया ! सरप्राइज़.. श्रेया मेरी पेईंग गैस्ट !

परीलोक से भूलोक तक

परीलोक से भूलोक तक

एक बार फिर मैं अपनी नई कहानी लेकर आपसे रूबरू हो रहा हूँ, यह कहानी असल में मेरा एक सपना है, जो मैंने अभी तीन–चार दिन पहले ही देखा था, उसी को आपके सामने एक कहानी के रूप में पेश कर रहा हूँ, आशा करता हूँ मेरा यह सपना आप सभी को पसंद आएगा। मेरी दूसरी कहानी ‘साजन का अधूरा प्यार’ को आप सभी का बहुत प्यार मिला, आगे भी मैं उम्मीद करता हूँ, आपका प्यार इसी तरह बरक़रार रहेगा।

मैं एक अच्छी कम्पनी में जॉब करता हूँ, कुल मिलाकर गुजारा ठीक-ठाक हो रहा था, एक दिन मैं अपने ऑफिस से जल्दी आ गया क्योंकि उस दिन घर पर कोई नहीं था, सभी लोग गाँव गए हुए थे शादी में, अभी शादी में दो दिन बाकी थे इसलिए मैं अभी नहीं गया था क्योंकि मुझे ऑफिस से छुट्टीई नहीं मिल पाई थी। ऑफिस से जल्दी आकर मैंने पहले तो अपने कपड़े सर्फ़ में भिगो दिए ताकि मुझे कपड़े धोने में ज्यादा मेहनत न करनी पड़े, उसके बाद मैं बाजार से सब्जी लेने चला गया, घर पर मैं बिल्कुल अकेला था तो सारे काम मुझे खुद ही करने थे।

मैं सब्जी लेकर अपने घर पहुँचा, फिर मैं कपड़े धोने लगा। करीब आधे घंटे में मैंने अपने सारे कपड़े धो डाले, कपड़े धोने की मुझे आदत तो थी नहीं, इसलिए मुझे कुछ थकावट सी हो गई तो मैं थोड़ी देर के लिए अपने बेड पर लेट गया, कब मुझे नींद ने धर दबोचा इसका पता भी नहीं चला और मैं सो गया।

दूर कहीं आकाश में परियों का देश था, एक दिन एक परी अपने परीलोक से घूमने के लिए निकली, उस परी का नाम सोनपरी था, वो सभी परियों में सबसे सुन्दर थी, जब उसको ज्यादा वक़्त हो गया तो वो वापस परीलोक जाने लगी कि अचानक उस परी के हाथ से उसकी जादुई छड़ी छुट कर ना जाने कहाँ खो गई, उसने अपनी छड़ी बहुत खोजा पर उसको नहीं मिली, वो बहुत उदास हो गई क्योंकि उस जादुई छड़ी के बिना वो अपने परीलोक में प्रवेश नहीं कर सकती थी।

थक-हार कर उसने रानी परी को याद किया, कुछ ही देर में रानी परी उसके सामने खड़ी थी, उसने रानी परी को सारी बात सच सच बता दी और रानी परी से पूछने लगी- अब मैं क्या करूँ? आप तो रानी परी हैं आप मुझे दूसरी छड़ी दे दो जिससे मैं परीलोक में प्रवेश कर सकूँ।

रानी परी ने कहा- परीलोक के नियम के अनुसार सभी परियों को एक ही बार जादुई छड़ी मिलती है और यह नियम मैं भी नहीं तोड़ सकती।

सोनपरी ने रानी परी से काफी विनती की पर रानी परी टस से मस नहीं हुई, सोनपरी रोने लगी तो रानी परी को उस पर दया आ गई और सोनपरी से बोली- तुम रोओ नहीं, मैं तुम्हारी इतनी मदद कर सकती हूँ कि तुमको यह बता सकती हूँ कि तुम्हारी छड़ी कहाँ गिरी है, और तुमको कैसे मिलेगी।

सोनपरी ने रानी परी से कहा- रानी परी, बतायें मुझे मेरी छड़ी कैसे मिलेगी?

रानी परी बोली- तुम्हारी छड़ी दूर पृथ्वी लोक पर गिरी है और वो एक वाटिका में है, पर परीलोक के नियम अनुसार अब तुम उसको देख नहीं सकती, पर एक युवक है जो उसको देख सकता है और वही युवक तुम्हारी मदद भी करेगा, पर वो भी उस छड़ी को रात्रि के दूसरे पहर के बाद ही देख सकता है, उस युवक का नाम साजन है।

और फिर रानी परी उसको साजन के पास जाने का मार्ग बताने लगी, रानी परी की बात सुनकर सोनपरी बहुत खुश हुई, फिर सोनपरी रानी परी से आज्ञा लेकर पृथ्वी लोक की तरफ चल दी।

कुछ देर बाद ही मुझे ही दरवाजे पर मुझे दस्तक सुनाई दी, अब कौन आ गया? कुछ देर आराम भी नहीं करने देते, मैं भुनभुनाते हुए बेड से उठा और फिर दरवाजा खोलने लगा, जैसे ही मैंने दरवाजा खोला तो मेरी आँखें फटी की फटी रह गई, मेरे सामने एक लड़की खड़ी थी, वो बला की खूबसूरत थी, मेरे आँखें जैसे पलक झपकाना भूल ही गई हों, मैं एकटक उन लड़की को देखे ही जा रहा था और वो मुझे देख कर मुस्कुरा रही थी।

तभी उस लड़की ने मुझसे कहा- मुझे साजन जी से मिलना है, क्या साजन जी घर पर हैं?

'कितनी मधुर आवाज है इसकी ! जैसे किसी ने मेरे कानों में शहद गोल दिया हो।' मेरे मुख से जैसे आवाज निकलनी ही बंद हो गई थी, मैंने हकलाते हुए कहा- ज... ज... जी... म... मैं... हह... ही... सा... ज... न हूँ... क... कही... ही... य... ये... क... या क्या क का... म है?

मैंने अपने आप को संभाला और सोचने लगा लो क्या यह सच में मुझसे ही मिलने आई है? मुझे तो अब भी विश्वास नहीं हो रहा था। वो लड़की मेरी विचारधारा को भंग करते हुए बोली- जी मेरा नाम सोनपरी है, और मुझे आपकी मदद चाहिए।

मैं तब तक अपने आप को संभाल चुका था, तो मैंने कहा ठीक है आप अन्दर आइये, अन्दर बैठ कर बात करते है और मैं दरवाजे से साइड हो गया और वो लड़की जिसने अपना नाम सोनपरी बताया था, घर के अन्दर आ गई तो मैंने घर का दरवाजा अन्दर से बंद कर लिया।

मैंने सोनपरी को सोफे पर बिठाया और उससे पानी के लिए पूछा, तो उसने मना कर दिया, फिर मैं भी उसके सामने सोफे पर बैठते हुए बोला- अब आप बतायें कि मैं आपकी क्या मदद कर सकता हूँ?

सोनपरी बोली- मैं एक परी हूँ और मैं परीलोक से आई हूँ, मैं परीलोक से घूमने के लिए निकली थी, घूमते-घूमते मेरे हाथ से मेरी जादू की छड़ी गिर गई, मैंने उसको बहुत तलाश किया पर मुझे वह नहीं मिली।

उसकी बात सुनकर मैं समझ नहीं पा रहा था कि यह क्या कह रही है, ये तो सब बकवास है, न तो कोई परी है और न ही उसका कोई उनका लोक, मुझे उसकी बातों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था, पर इसको देखकर तो यही लगता है कि वास्तव में ही कोई परी ही है, मेरे दिमाग ने काम करना बंद कर दिया था।

मैं सोफे से उठा और एक गिलास पानी पिया और फिर मैंने अपने सर को बहुत जोर से झटका और फिर वापस बैठ गया।

मैंने सोनपरी को कहा- मुझे पता नहीं कि आप सच बोल रही हैं या फिर झूठ, चलो मान लेता हूँ, आप सच ही कह रही हो तो जहाँ तक मैंने पढ़ा और सुना है, आपके पास ऐसी जादू की छड़ी की कोई कमी नहीं होगी तो आप उस छड़ी की क्या आवश्यकता है, और इसमें मैं आपकी मदद कैसे कर सकता हूँ?

सोनपरी बोली – साजन जी, असल में बात यह है कि मैं उस छड़ी के बिना परीलोक में प्रवेश नहीं कर सकती।

सोनपरी की आवाज इतनी मधुर और मीठी थी, जब भी बोलती है तो लगता है कि जैसे कोयल कोई गीत सुना रही हो। मैंने अपने सर को फिर से झटका और अपने ख्यालों की दुनिया से वापस आया, मैंने कहा- ठीक है, पर मैं आपकी कैसे मदद कर सकता हूँ, यह तो आपने बताया ही नहीं।

सोनपरी बोली- साजन जी, जब हमारी छड़ी नहीं मिली तो मैं बहुत उदास हो गई थी उसी वक़्त मैंने रानी परी को याद किया तो वो सामने आ गई, मैंने उनको अपनी समस्या बताई, काफी मिन्नतें करने के बाद रानी परी ने मुझे बताया कि मेरी छड़ी कहाँ गिरी है और उन्होंने यह भी बताया कि जिधर हमारी छड़ी गिरी है, वहाँ साजन नाम का एक लड़का रहता है और वो ही तुम्हारी छड़ी तलाशने में तुम्हारी मदद करेगा क्योंकि अब वो छड़ी सिर्फ साजन को ही दिखाई देगी, साजन जी क्या आप हमारी मदद करेगे?

यह सवाल सोनपरी ने किया और फिर वो बोली- बदले में आप जो चाहोगे मैं करने के लिए तैयार हूँ, पर आप हमारी मदद करें, मैं बड़ी उम्मीद से आपके पास आई हूँ।

अब मैं क्या बोलूँ, मेरी तो कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था, यह सच कह रही है या झूठ, मैं तो यह भी फैसला नहीं कर पाया।

सोनपरी अपने दोनों हाथ जोड़ कर मुझसे बोली- साजन जी, हमारी मदद कीजिये, नहीं तो मैं अपने लोक कभी वापस नहीं जा सकूँगी। मैंने सोनपरी को बोला- प्लीज़ आप मुझे इस तरह शर्मिंदा न करें, मेरे से जो बन सकेगा, मैं आपकी मदद करूँगा।

पता नहीं क्यों मैं उसको मना नहीं कर पाया, मैंने सोनपरी को बोला- चलिए आपकी छड़ी को खोजते हैं।

सोनपरी बोली- साजन जी, वो छड़ी आपको रात के दूसरे पहर, यहाँ के हिसाब से रात के 12 बजे के बाद ही दिखाई देगी, अभी हम चाहकर भी उसको नहीं देख सकते।

मैंने घड़ी की तरफ देखा तो अभी रात के आठ बजे रहे थे, मैंने कहा- ठीक है, हम रात को 12 बजे के बाद ही उसको खोजेंगे, आप तब तक आराम कर लो। मैं खाना बना लेता हूँ, आपको भी भूख लगी होगी !

इतना कह कर मैं रसोईघर में चला गया। खाना बनाते हुए मैं सोच रहा था, सोनपरी वास्तव में ही परी तो नहीं है, जो यह कह रही है वो मुझे सच भी लग रहा था क्योंकि उसकी वेशभूषा तो इसी प्रकार ही थी। फिर मैं सोनपरी के रूप में खोता ही चला गया, संगमरमर जैसा उसका गोरा बदन, वो इतनी गोरी थी कि कोई भी उसको हाथ लगाने से पहले दस बार सोचेगा कहीं मेरे हाथ लगाने से यह मैली न हो जाये ! सोनपरी की बड़ी-बड़ी आँखें जैसे कोई झील हो, माथे पर कुमकुम की छोटी सी बिंदी उसकी सुन्दरता को चार चाँद लगा रहे थे, पतले गुलाबी होंठ जैसे गुलाब की पंखुड़ी, सुराहीदार उसकी गर्दन, उसके शरीर पर मात्र दो ही वस्त्र थे, एक वस्त्र ने उसके दोनों उभारों को कैद किया हुआ था और दूसरा वस्त्र जो कि वो साड़ी जैसा दिखता था पर साड़ी के जैसा बिल्कुल नहीं था, उसकी कमर से ऊपर का हर एक अंग दिखाई दे रहा था बस उसके उभारों को छोड़कर, वो तो बस सर से पाँव तक काम की देवी ही लग रही थी।

तभी अचानक मेरी सोच को विराम लगा, मेरे मोबाइल फ़ोन की घंटी बज रही थी, फ़ोन को उठा कर देखा तो मेरे मम्मी का फ़ोन था।

'हैल्लो !' मम्मी जी मैंने फ़ोन रिसीव करते हुए कहा तो मम्मी की आवाज आई- बेटा, टाइम से खाना खा लेना, हमें तेरी बहुत चिंता हो रही है, अगर तुम भी साथ आ जाते मुझे चिंता नहीं रहती, पर अब तुझे खुद ही अपना ध्यान रखना पड़ेगा।

"मैं ठीक हूँ मम्मी जी, आप मेरी चंता न करो और दो ही दिन की तो बात है, मैं रह लूँगा।

मम्मी बोली- ठीक है बेटा, पर तुम शादी में टाइम से पहले पहुँच जाना।

मैंने कहा- ठीक है मम्मी जी !

इतना सुनने के बाद मम्मी ने फ़ोन काट दिया। मेरा खाना भी बन चुका था, मैं रसोई से बाहर आया तो देखा वो अब भी सोफे पर बैठी थी, मैं सोनपरी से बोला- यह क्या सोनपरी जी, आप तो अभी तक यहीं बैठी हैं, आप फ्रेश भी नहीं हुई, चलिए आप फ्रेश हो जाओ, खाना बन चुका है, जब तक आप फ़्रेश होंगी तब तक मैं खाना लगाता हूँ।

और फिर मैं सोनपरी को बाथरूम भेज कर में खाना लगाने लगा।

हम दोनों ने खाना खाया और फिर से हम एक दूसरे के सामने बैठ गए, सोनपरी ने मेरे बनाये हुए खाने की बहुत तारीफ की और बात करते करे समय का पता ही नहीं चला कि कब 11:45 हो गये मैंने सोनपरी से कहा- अब 12 बजने वाले हैं, हमें अब चल कर छड़ी को खोजना है।

पर तभी मेरे दिमाग में आया कि हम उसको खोजेंगे कैसे, हमें क्या पता कि छड़ी कहाँ गिरी है और यही बात मैंने सोन परी से कही। सोनपरी बोली– साजन जी मुझे रानी परी ने इतना बताया था कि वो आपके पास की वाटिका में ही कहीं गिरी है, अब बताओ कि आपके घर के पास कौन सी वाटिका है, हमें वहीं चल कर उसको खोजना होगा।

मैंने सोनपरी से कहा- वो तो हमारे घर के पास ही है, चलो अब तो पूरे 12 भी बज चुके हैं।

फिर हम दोनों पार्क में गए और उस छड़ी को खोजने लगे। थोड़ी सी मेहनत के बाद वो छड़ी मुझे मिल ही गई, मैंने उसको सोनपरी को थमा दिया, उसको छड़ी देने के बाद हम दोनों घर वापस आ गए।

सोनपरी मुझे से बोली- आपने इस छड़ी को खोजने में मेरी बहुत सहायता की है, अब आप बतायें कि मुझे क्या करना है, जैसा कि मैंने आप से कहा था, आप जो कहेगे मैं वो करुँगी, बतायें साजन जी मुझे क्या करना है?

तो मैंने कहा- उसकी कोई आवश्यकता नहीं है, आपने इतना कह दिया बस यही बहुत है मेरे लिए, आप जैसी अप्सरा परी से मिला और आपके साथ इतना वक़्त गुजारा, यही क्या मेरे लिए किसी इनाम से कम है।

सोनपरी बोली- ठीक है साजन जी, पर मुझे आपको कुछ देने की इच्छा हो रही है।

मैंने सोनपरी से पूछा- क्या देने की इच्छा है?

तो वो बोली- ऐसा कुछ जो आप जीवन भर न भूल पाओ !

मैंने फिर पूछा- बताओ न सोनपरी जी?

सोनपरी बोली- पहले आप अपनी आँखें बंद करो !

तो मैंने अपनी आँखें बंद कर ली, सोनपरी मेरे इतने समीप आ गई, उसकी साँसों को मैं अपने चेहरे पर महसूस कर रहा था, उसने अपने गुलाबी रस भरे होंठ मेरे होंठ पर रख दिए और मुझे चुम्बन करने लगी, मुझे उसका यह चुम्बन बहुत ही अच्छा लगा इसलिए मैं उसको मना नहीं कर सका, सोनपरी ने करीब दस मिनट तक मुझे चुम्बन किया।

इस तरह उसका चूमना मुझे आनन्दित कर रहा था, मेरी तो समझ में नहीं आ रहा था, कि मैं क्या करूँ, बस उसके सामने चुपचाप खड़ा रहा।

सोनपरी ने मुझसे पूछा- आपको कैसा लगा मेरा चुम्बन?

तो मैंने कहा- बहुत अच्छा !

तो फिर से उसने मुझे चूमना शुरू कर दिया, मेरे होंठ वो बहुत ही प्यार से चूस रही थी और मुझे चूमते हुए उसने अपना एक हाथ मेरे पैंट के ऊपर उभरे हुए लिंग पर रख दिया, मेरा लिंग इस वक़्त सख्त हो चुका था और वो मेरे लिंग को हाथ में पकड़ कर दबा रही थी, बहुत ही सुखद एहसास हो रहा था मुझे, काश वक्त यही थम जाये, पर वो था कि निरंतर चलता जा रहा था।

अब उसने मेरी शर्ट के बटन खोलने शुरू कर दिए और एक एक करके सारे बटन खोल डाले फिर उसने मेरी बनियान भी उतार दी, मैं ऊपर से पूरा निर्वस्त्र हो चुका था। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।

अब उसके हाथ मेरी पैंट को खोलने में व्यस्त हो गए, फिर उसने मेरी पैंट भी उतार दी, अब सिर्फ मैं अंडरवियर में था, सोनपरी की इन हरकतों से मेरा लिंग उत्तेजित हो चुका था, वो अंडरवियर से बाहर आने के लिए मचल रहा था, सोनपरी ने मेरा एक मात्र अंडरवियर भी उतार दिया, मैं अब उसके सामने पूरा जन्मजात नंगा हो चुका था और वो अभी वैसे ही थी, उसने अपने कपड़े अभी तक नहीं उतारे थे।मेरे लिंग को हाथ में पकड़कर उसको सहलाने लगी, उसके नाजुक हाथ में लिंग को सहला रहे थे और वो मेरी तरफ देख कर मुस्कुरा रही थी।

अब तक मेरे तनबदन में आग लग चुकी थी, मैंने सोनपरी को पकड़ कर अपनी तरफ खींचा और उसके लबों पर मैं अपने लब रख कर उसके लब चूसने लगा, वो मेरा लिंग अपने हाथ से सहला रही थी। जैसे ही मैंने उसके ऊपर के वस्त्र को खोला तो उसके स्तन मेरे हाथों में आ गए, सोनपरी ने अन्दर कुछ भी नहीं पहना हुआ था, मैं उसके स्तन को बड़े ही प्यार से दबाने और सहलाने लगा।

उसके स्तन बहुत कड़े थे, मुझे इतना आनन्द आ रहा था कि मैं बयान नहीं कर सकता। सोनपरी मेरे लिंग को सहलाते सहलाते नीचे की तरफ बैठने लगी, फिर उसने मेरे लिंग पर एक चुम्बन अंकित किया और मेरे लिंग का सुपारा अपने मुंह में लेकर चूसने लगी, उसकी लिंग चुसाई से आनंदित होकर मैं उसके बालों में हाथ फेरने लगा।

मैं सोनपरी को लेकर बिस्तर पर पहुँचा, फिर मैंने उसका आखिरी वस्त्र भी उतार दिया, अब हम दोनों नग्न अवस्था में एक दूसरे को चूम रहे थे, मैं उसके स्तन को अपने मुंह में लेकर चूसने लगा और साथ ही अपना एक हाथ उसकी योनि पर रख दिया। उसकी योनि मेरे हाथ में ऐसी लग रही थी जैसे मखमल के ऊपर हाथ रखा हो, बहुत ही नाजुक और साफ सुथरी थी उसकी योनि !

मैंने उसकी योनि में अपनी एक उंगली डाल दी, अन्दर से बहुत ही गर्म थी वो, जैसे ही मैंने उसमे अपनी उंगली डाली, वो ऊपर की तरफ उछल गई और उसके मुँह से मादक स्वर निकल पड़े- ऊऊऊआआअ स्सस्सीईईईई !

उसके ये स्वर मुझे और भी उत्तेजित कर रहे थे, मैंने उसके स्तन चूस चूस कर लाल कर दिए, जब मुझसे नहीं रहा गया तो मैं उसकी टांगों के बीच आ गया और अपने लिंग को उसकी योनि के ऊपर रगड़ने लगा।

सोनपरी उतेजना के मारे अपने स्तन अपने ही हाथों से मसलने लगी, मैंने उसकी उतेजना को देखते हुए अपना लिंग उसकी योनि में डाल दिया जैसे ही मेरा लिंग योनि के अन्दर गया उसके मुंह से मादक स्वर फ़ूट पड़े- ऊऊऊउईईईईई स्स्स्सीईई !

सोनपरी की योनि इतनी तंग थी कि बहुत ही मुश्किल से मेरा लिंग योनि के अन्दर जा रहा था, मेरे लिंग में मीठा मीठा दर्द हो रहा था, जब मैंने अपना पूरा लिंग उसकी योनि में डाल दिया, वो दर्द के कारण जोर से चीख पड़ी- ऊऊईईईईम्म्म्माआआअ !

उसकी योनि से मुझे कुछ गर्म गर्म तरल सा निकलता हुआ प्रतीत हुआ, शायद वो खून था जो मेरे लिंग को भिगोता हुआ योनि से बाहर निकल रहा था।

मैं उसके ऊपर पूरा लेट गया और उसके लबों को अपने होंठों के बीच दबाकर चूसने लगा।

जब उसका दर्द कुछ कम हुआ तो वो अपनी योनि को मेरे लिंग पर दबाने लगी, फिर मैंने भी उसकी पैरों को उसकी छाती से मिला कर अपने लिंग से उसकी योनि पर घर्षण करने लगा, सोनपरी के मादक स्वर से पूरे कमरे में गूंज रहे थे- ऊऊफ़्फ़फ़ आऐईईइफ़ ऊऊऊऊ ऊऊउईईई ऊऊऊओ !

अब उसको भी मज़ा आ रहा था, तो उसने अपने पैरों को सीधा किया और वो नीचे से अपने चूतड़ उछालने लगी, मैं उसके स्तनों को दबा कर चुदाई कर कर रहा था कि अचानक उसने मुझे कस कर जकड़ लिया और उसकी योनि से प्रेम रस की वर्षा मेरे लिंग पर होने लगी।

म्मम्म ऊऊह्ह !

इसके बाद वो स्थिर हो गई थी, पर मेरा अभी नहीं हुआ था तो मैं उसके स्तन को जो जोर से मसलते हुए उसकी योनि पर धक्के मारने लगा, कुछ देर बाद ही मेरे लिंग से भी पिचकारी छुट गई, और उसकी योनि को अपने प्रेम रस से भर दिया।

कुछ देर हम दोनों ऐसे ही लेटे रहे, मेरा लिंग भी सिकुड़ कर उसकी योनि से बाहर आ गया था।

मैं जब उसके ऊपर से उठा तो देखा सोनपरी की योनि से रक्त और वीर्य मिल कर बाहर निकल रहा था। मैंने तौलिये से सोनपरी की योनि को साफ़ किया और फिर अपने लिंग को भी साफ़ किया।

सोनपरी उठी और बाथरूम जाने लगी पर उससे तो चला भी नहीं जा रहा था, मैं उसको सहारा देकर बाथरूम के अन्दर ले गया तो उसने कहा- आप बाहर जाओ, मैं अभी आती हूँ !

मैं बाहर आ गया, कुछ देर बाद वो भी बाहर आ गई, और मैं उसको फिर से अपनी बाहों में लेकर बेड पर लेकर लेट गया। वो मेरे कंधे पर सर रख कर लेटी रही और मैं उसके स्तन से खेलता खेलता कब नींद के आगोश में चला गया, कुछ पता ही नहीं चला।

सुबह 6 बजे मेरे फ़ोन का अलार्म बजा तो मेरी नींद खुली और जैसे ही मैं उठा तो देखा मेरे शरीर पर एक कपड़ा भी नहीं था, मुझे रात की बात याद आई तो मैं सोनपरी को देखने लगा पर वो मुझे पूरे घर में कहीं नहीं मिली, दरवाजा अब भी अन्दर से ही बंद था, फिर मैं सोचने लगा- क्या जो कुछ हुआ, वो हकीकत था या फिर कोई सुनहरा सपना?

मेरी कुछ समझ में नहीं आया तो मुझे वो एक हसीं सपना ही लगा पर जो भी था बड़ा ही प्यारा था।

चूत से चुकाया कर्ज़

चूत से चुकाया कर्ज़

हाय दोस्तो... आपकी शालिनी भाभी एक बार फिर से आप सबके लण्ड खड़े करने आ गई है अपनी एक नई कहानी लेकर !

भूले तो नहीं ना मुझे?

'तो लगी शर्त', 'जीजा मेरे पीछे पड़ा', 'गर्मी का इलाज', और 'डॉक्टर संग मस्ती'

आया कुछ याद?

हाँ जी आपकी वही शालिनी भाभी जयपुर वाली !

आज मेरी कहानी का हर एक दीवाना मुझे चोदने को बेचैन है। सच मानो अब तो मेरी चूत भी चाहती है कि मैं अपने हर दीवाने का लण्ड अपने अंदर घुसवा कर चुद जाऊँ पर यह मुमकिन नहीं है यारो !

आज की कहानी की ख़ास बात यह है कि इस कहानी का मेरा हीरो भी आप सबका जाना पहचाना है।

जी हाँ, मेरी अभी तक की सब कहानियों को मेरे अनुसार लिखने वाला मेरा अज़ीज़ राज कार्तिक असल में मैं अपने साथ घटी हुई सारी चुदाई की दास्ताँ उसे सुनाती थी और वो कहानी लिखा करता था और ऐसे ही चुदाई की बातें करते करते हम एक दूसरे के बहुत ज्यादा करीब आ गये थे और कई बार उसने फोन पर मेरे साथ चुदाई की बातें करते करते हम दोनों ने ही हस्तमैथुन भी किया है।

वो मेरी कहानियाँ लिखता था, यह उसका बहुत बड़ा अहसान था मुझ पर और अब मेरा मन था कि मैं उसका यह क़र्ज़ इस तरह से चुकाऊँ कि वो खुश हो जाए !

और मैं उस पर अपनी सबसे अनमोल चीज़ यानि मेरी चूत उस पर न्यौछावर कर देना चाहती थी।

मैं जयपुर से थी और वो दिल्ली से था, ज्यादा दूर नहीं था पर बस हम अभी तक मिल नहीं पाए थे। फिर मैं उसके पीछे पड़ी कि वो जयपुर आये क्यूंकि मेरा परिवार था, मैं दिल्ली नहीं जा सकती थी।

और फिर एक दिन उसका फोन आया कि वो अपने काम के सिलसिले में जयपुर आ रहा है। मैं तो ख़ुशी के मेरे पागल ही हो गई लेकिन जब उसने अपने आने का दिन बताया तो मेरी ख़ुशी गायब हो गई क्यूँकि उस दिन मेरे पति का कोई टूर नहीं था और वो भी उस दिन जयपुर में ही थे, लेकिन मैं उससे मिलने को मरी जा रही थी तो उसे आने से मना ही नहीं किया, सोचा मैं कुछ ना कुछ जुगाड़ निकाल ही लूँगी।

वो बिल्कुल सुबह वाली ट्रेन से जयपुर आ गया और मेरे घर से थोड़े ही दूर के एक होटल में रुक गया था, उसका प्लान था कि वो पहले अपने काम को निपटायेगा और फिर हम मिलेंगे।

लेकिन मेरे पति के ऑफिस निकलते ही मैंने उसे एक बार कॉफ़ी केफे डे में मिलने को कहा। उस समय घर पर काम वाली बाई काम कर रही थी, उसे बेबी को थोड़ी देर के लिए संभालने के लिए कहा और घर से निकल पड़ी। वो मुझसे पहले ही वहाँ मौजूद था।

दोस्तो, लिखते मुझे हुए शर्म आ रही है लेकिन उसे सामने देखते ही मेरी चूत गीली हो गई और मैं पगला सी गई, वो भी मुझे देख कर व्याकुल सा हो गया। हमने हाथ मिलाया, पूरे शरीर में झुरझुरी सी छूट गई।

वो मुझे लेकर केफे में जाने लगा, मैंने उसे रोकते हुए कहा- तुम रुके कहाँ हो? क्या अपना कमरा नहीं दिखाओगे?

वो बोला- वो सामने रहा !

मैंने कहा- तो फिर कॉफ़ी बाद में पियेंगे।

वो राज़ी हो गया और दोस्तो, हम दोनों ही इतनी फुर्ती से उसके होटल रूम में पहुँचे कि मैं बता नहीं सकती।

और जैसे ही रूम में दाखिल हुए,

मैं उसकी बाहों में झूल गई, उसने भी मुझे कस के पकड़ लिया जैसे और हम दोनों के ही दोनों हाथ, दोनों पैर और मुँह एक दूसरे के बदन पे रगड़ा रगड़ी, चूमाचाटी में व्यस्त हो गए, ऐसा लग रहा था कि हम दोनों एक दूसरे में अभी ही घुस जाएँ क्यूँकि उसने मुझे बहुत ही ज्यादा कस के पकड़ा हुआ था, उसने मेरे बाल कस के पकड़ कर मेरा चेहरा पीछे की तरफ खींच दिया और मेरे चेहरे ओअर चुम्बनों की बरसात सी कर दी, मेरे होंठ, मेरे गाल, मेरी नाक, मेरी ठोड़ी, कोई जगह नहीं छोड़ी उसने, और अब वो गर्दन के रास्ते नीचे की तरफ बढ़ चला और अब उसके मुँह का गीलापन मैं अपनी छातियों पर महसूस कर रही थी।

मित्रो, आपको यह तो मालूम ही है कि तुम्हारी यह भाभी वैसे ही बहुत खुले गले के ब्लाउज पहनती है, जिसमें से मेरे गदराये हुए चूचे बाहर दीखते रहते हैं, और अभी इस राज़ की इस हरकत की वजह से मेरे उरोन इतने बाहर आ गये कि निप्पल भी दर्शायमान होने लफ़े थे ! मेरे उस बदमाश आशिक़ ने दूसरे हाथ से निप्पल को बाहर निकाल दिया, बूब्स इस समय ब्रा और ब्लाउज़ में भी फंसे थे, इस वजह से मुझे दर्द होने लगा था क्यूँकि वो बहुत ही ज्यादा तन गए थे और ऐसे फूले गुब्बारे जैसे मेरे बूब्स अब उसने अपने मुँह में भर लिए। अब जब वो इतना ज्यादा आगे बढ़ ही चुका था, तो ऐसे में आपकी यह भाभी भी कहाँ पीछे रहने वाली थी, मैंने भी उसकी शर्ट उसकी पैंट से बाहर खींच दी और अपने हाथ उसके अंदर डाल दिए। अब मेरे हाथ उसकी नंगी पीठ, उसकी बालों से भरी हुई छाती पे फिसल रहे थे, मैं उस रगड़ रही थी, नोच रही थी, जहाँ मेरी चूत बिल्कुल गीली हो गई थी, वही राज़ का भी लंड बुरी तरह से तन गया था, जो मुझे अपनी जांघों में महसूस भी हो रहा था।

अब मैंने उसके लंड का नाप लेने के लिए आगे के रास्ते अपना हाथ उसकी पैंट और अंडरवियर में अंदर तक घुसा दिया। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।

उसका भी लंड का सुपाड़ा बहुत गीला हो रहा था और लंड सचमुच बहुत ही फौलादी था, क्यूँकि उसके लंड की जड़ में झांटों वाली जगह पर मेरी उंगलियाँ पहुँच गई तो उसका लंड मेरी कलाई तक आ गया यानि काफी लम्बा था, और जब मैंने उस पर अपने हाथ से ग्रिप बनाई तो मालूम पड़ा कि वो बहुत मोटा भी था, लेकिन मेरी इस हरकत ने उसे विचलित कर दिया शायद मेरे इस तरह से उसके लंड को ग्रिप बना के रगड़ने से उसे डिस्चार्ज होने का डर हुआ हो, वो फ़ौरन मुझे अलग हो गया, हमारी साँसें तेज़ हो गई थी, पूरा बदन पसीने में भीग गया था।

वो थोड़ा संयत होने के बाद बोला- शालू मेरी जानू, तुम मुझे पूरी तरह से कब मिलोगी, मैं मरा जा रहा हूँ यार, और ऐसे आधा अधूरा मिलन मुझे और पागल बना देता है।

मैं फिर उससे लिपट गई और बोली- हाँ यार, तुम सच कहते हो, मैं घर जाकर कुछ जुगाड़ करती हूँ। यार मेरे पति यहीं जयपुर में हैं, वरना वो अक्सर टूर पर रहते हैं।

फिर हम बाहर आये, कॉफ़ी पी, वो जिस काम से जयपुर आया था, वो करने चला गया और मैं रात के मिलन का जुगाड़ सोचती हुई अपने घर आ गई।

और कहते हैं ना कि जहाँ चाह, वहाँ राह !

ऐसा ही हुआ, घर आने के थोड़ी ही देर बाद मेरी जोधपुर वाली ननद का फोन आया कि वो जयपुर आना चाह रही है लेकिन कोई साथ ही नहीं मिल रहा, क्या करूँ?

मुझे तुरंत एक आईडिया सूझा, मैंने उसे कहा- मैं 'इन' से बोलती हूँ, ये तुम्हें लेने आ जायेंगे, और तुम भी अपनी तरफ से उन्हें फोन कर दो।

मेरी यह ननद मेरे पति की सबसे चहेती बहन है, उनसे छोटी है, मुझे उम्मीद थी कि वो उसकी बात को टाल नहीं पाएँगे और इस तरह मुझे अपने ही घर में पूरी रात का एकांत मिल जाएगा अपने राज़ के साथ !

क्यूँकि होटल में मेरे अपनी बेबी के साथ जाने और पूरी रात रुकने में खतरा था और होटल वालों को शक हो सकता था और घर पर मेरे पति का फ़ोन लैंडलाइन फोन पर भी आ जाता था कभी कभी, तो यह सब घर पर ही करना सही था।

और फिर मैंने जब इन्हें फोन किया तो उसके पहले ही ननद उन्हें फोन कर चुकी थी और वो जाने का मन बना चुके थे, लेकिन फिर भी मैंने झूठमूठ का गुस्सा दिखाया और कहा- क्या यार? इसका मतलब मुझे आज रात अकेले ही रहना होगा?

वो मुझे समझाते रहे, मनाते रहे और उनकी रात के सफर की तैयारी करने को कहा। वो शाम 7 बजे वाली ट्रेन से ही निकलने वाले थे।

मैं उनके सफ़र की तैयारी में लग गई और शाम 6.30 पर जैसे ही उनकी कैब उन्हें लेकर निकली, मुझे ना जाने क्या होने लगा।

दोस्तो, मैंने जिंदगी में बहुत सेक्स किया है, नए नए लंड लिए हैं लेकिन हर बार सेक्स के पहले में इतनी ज्यादा उतावली और उत्तेजित हो जाती हूँ, न जाने मेरे साथ ऐसा क्यूँ है।

मैंने राज़ को फोन लगाया और उसे जल्दी से जल्दी आने को बोला। उसने 8.30 तक आने को बोला। तब तक मैंने उसके लिए डिनर बनाने का सोचा और बेबी के लिए तैयारी की जिससे वो टाइम से सो जाए और फिर अपने आप को सजाने संवारने में लग गई।

मैंने बिना बाहों वाला काला ब्लाउज़ जिसका गला काफी गहरा था, काले रंग की ही नेट वाली पारदर्शी सी साड़ी पहनी जिसे नाभि के काफी नीचे बांधा, अंदर मेरी पैंटी और ब्रा भी आज मैंने सेट वाले ही पहनी जो काले ही थी, मेरा रंग बहुत गोरा है इसलिए मुझ पर काली ड्रेस बहुत अच्छी लगती है।

और अब मैं बालकॉनी में आकर अपने राजा यानि अपने राज़ का इंतज़ार करने लगी।

दोस्तो, इसके आगे रात की असली कहानी अगले भाग में जरूर पढ़ना।

और हाँ दोस्तो, इस बार की मेरी यह कहानी लिखने में अन्तर्वासना के ही एक उत्कृष्ट लेखक अरुण मदद कर रहे हैं जो संयोग से मेरे शहर जयपुर से ही हैं।

आपकी चहेती